Moral of the story thakur ka kuha in hindi
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Panchayat short moral stories गांव के हनुमान मंदिर पर लोगों का हुजूम लगा हुआ था. अगल-बगल के गांव से भी लोग भागते हुए उस स्थान पर पहुंच रहे थे. कारण…..कारण ठाकुर दीनदयाल के जिंदा रहते हुए, उनका छोटा बेटा घर में बटवारा चाहता था. ठाकुर दीनदयाल बहुत ही सम्मानित व्यक्ति थे. अगल- बगल के कई गावों में उनकी धाक थी. इसलिए हनुमान मंदिर मैदान में लोगों का हुजूम डौल पड़ा था. इसमें उनसे जलने वालों की तादाद भी अच्छी ख़ासी थी… जो कि मन ही मन खूब प्रसन्न हो रहे थे. लोगों में बड़ी उत्सुकता थी कि देखते हैं आज ठाकुर साहब क्या फैसला करते हैं.
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ठाकुर दीनदयाल सिह की दो लड़के थे ठाकुर जोगिंदर सिंह और ठाकुर परमिंदर सिंह. ठाकुर जोगिंदर सिह का व्यवहार बहुत शांत और मधुर था, जबकि ठाकुर परमिंदर सिंह इसके ठीक उलट बचपन से उदंड स्वभाव का था. समय के साथ-साथ उसका व्यवहार और भी खराब होता चला गया. इसका सबसे बड़ा कारण था उसके मां काप्यार-दुलार……… ठाकुर साहब जब भी उसकी बदमाशियों पर उसे डाँटते थे तो वह भागकर अपनी मां जसवन्ती के पास चला जाता था. छोटा बेटा होने की वजह से उसे खूब प्यार मिला, लेकिन उसने उस प्यार की कद्र नहीं की, बल्कि वह पहले से अधिक उदंड हो गया.
ठाकुर साहब कहा करते थे कि ठकुराइन इसका इतना प्यार-दुलार समय के साथ बहुत तकलीफ़ देगा. इसके वजह से पूरा परिवार भी परेशान होगा. ठाकुर साहब बहुत ही दूरदर्शी थे, ३० साल पहले कही हुई बात आज अक्षरशः सत्य हो रही थी…..यह सोच-सोचकर ठकुराइन रोए जा रही कि अगर मैने उसी समय ठाकुर साहब की बात मान ली होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.
मंदिर के मैदान में भारी भीड़ जुटी हुई थी…उसमें ठाकुर साहब से संवेदना रखने वाले लोग भी एक अच्छी तादाद में पहुँच गये थे. ठाकुर- ठकुराइन और उनका परिवार भी मैदान में पहुँच चुका था. उधर उनका छोटा बेटा भी अपने परिवार के साथ मैदान में पहुँच गया, उसके परिवार में उसके दो बच्चे और उसकी पत्नी थी. वह ठाकुर साहब से ५ कदम दूर बैठ गया. पूरे मैदान में खामोशी छा गयी थी. सुई गिरने की आवाज़ भी लोगों को सुनाई दे सकती थी.
खामोशी को चीरते हुए ठाकुर दीनदयाल का स्वर गूँजायमान हुआ…..प्रिय जनता, आप लोगों को इस खानदान के तीन पीढ़ियों का इतिहास पता है. हमारे पुरखों ने और हमने खुद दूसरे के घरों के झगड़ों को सुलझाया है और आज हमारे ही घर हमारे ही दीपक से आग लगी हुई है. इससे बड़ी दुख की बात क्या हो सकती है. इस आग को आप लोग देख भी रहे हैं और समझ भी रहे हैं. मैं आज यह फ़ैसला करता हूँ कि मैं इसे इसका हिस्सा देकर अपने परिवार से बेदखल करता हूँ. मैं चाहता तो इसे कुछ भी नहीं देता और इसे बेदखल भी कर देता, लेकिन यह मुझसे नहीं हो सकता….मैं इसके जैसा गद्दार नहीं हूँ….. इस घटना ने मुझे यह सीख मिली कि जब किसी मनुष्य के शरीर में कोई छोटा घाव हो जाता है तो मनुष्य उसे यह समझ कर नजर अंदाज कर देता है कि चलो समय के साथ ठीक हो जाएगा या फिर वह थोड़ी बहुत दवा कर लेता है….और ग़लती बस वहीं हो जाती है….समय बिताने के बाद वही घाव नासूर बन जाता है…..