mother teresa ka jeevan se kya sandesh milta hai
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ऐसा माना जाता है कि दुनिया में लगभग सारे लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं पर मानव इतिहास में ऐसे कई मनुष्यों के उदहारण हैं जिन्होंने अपना तमाम जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा में अर्पित कर दिया। मदर टेरेसा भी ऐसे ही महान लोगों में एक हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा ऐसा नाम है जिसका स्मरण होते ही हमारा ह्रदय श्रध्धा से भर उठता है और चेहरे पर एक ख़ास आभा उमड़ जाती है। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही गरीबों, दरिद्रों और असहायों की जिन्दगी में प्यार की खुशबू भर दी थी।
प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में) में हुआ। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता परलोक सिधार गए, जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी, बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे। वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं। ऐसा माना जाता है की जब वह मात्र बारह साल की थीं तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी और 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।
भारत आगमन
सिस्टर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उनसे बहुत स्नेह करते थे। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं। उनका मन शिक्षण में पूरी तरह रम गया था पर उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी। 1943 के अकाल में शहर में बड़ी संख्या में मौते हुईं और लोग गरीबी से बेहाल हो गए। 1946 के हिन्दू-मुस्लिम दंगों ने तो कोलकाता शहर की स्थिति और भयावह बना दी।
प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में) में हुआ। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता परलोक सिधार गए, जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी, बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे। वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं। ऐसा माना जाता है की जब वह मात्र बारह साल की थीं तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी और 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।
भारत आगमन
सिस्टर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उनसे बहुत स्नेह करते थे। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं। उनका मन शिक्षण में पूरी तरह रम गया था पर उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी। 1943 के अकाल में शहर में बड़ी संख्या में मौते हुईं और लोग गरीबी से बेहाल हो गए। 1946 के हिन्दू-मुस्लिम दंगों ने तो कोलकाता शहर की स्थिति और भयावह बना दी।
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एग्नेस को बचपन से ही दीन-दुखियों और बीमासे की सेवा करने का बड़ा शौक था । अत: उनकी इच्छानुसार लोरेटो संघ ने कुछ अन्य लड़कियों के साथ उन्हें कोलकाता भेज दिया । यहाँ पर उन्होंने संघ के नियमों को छोड्कर अपने ढंग से सेवा आरभ की ।
एग्नैस अब टेरेसा बन चुकी थी । उन्होंने एक अमरीकी संस्था में नर्स की ट्रेनिंग ली और कोलकाता लौटकर एक झोपड़ी में रहकर अपना कार्य शुरू किया । फिर एक काली मंदिर की धर्मशाला में रहकर बीमारों की सेवा करने लगीं । इसके बाद उन्होंने अपनी संस्था ‘मिशनरी औरचैरिटी’ आरम्भ की ।
इस संस्था में कई हजार लड़कियाँ उनसे प्रेरित । प्र दुष्ट । प्छत होकर सेवा-कार्य के लिए शामिल हो गईं । मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों, विधवाओं और रोगियों के लिए अनेक स्थानों पर केंद्र खोले । आज नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, यूगोस्लाविया, माल्टा, इंग्लैंड, दक्षिणी अमेरिका में मदर टेरेसा के सेवा केंद्र काम कर रहे हैं ।
मदर टेरेसा की निःस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री तथा 1980 में भारत-रत्न के सम्मान से विभूषित किया । 1979 में उन्हें नोबेल शान्ति पुरस्कार तथा 1971 में कैनेडियन राष्ट्रीय पुरस्कार तथा पोनजॉन शांति पुरस्कार प्राप्त हुए । इससे पहले 1962 में ही उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था ।
एग्नैस अब टेरेसा बन चुकी थी । उन्होंने एक अमरीकी संस्था में नर्स की ट्रेनिंग ली और कोलकाता लौटकर एक झोपड़ी में रहकर अपना कार्य शुरू किया । फिर एक काली मंदिर की धर्मशाला में रहकर बीमारों की सेवा करने लगीं । इसके बाद उन्होंने अपनी संस्था ‘मिशनरी औरचैरिटी’ आरम्भ की ।
इस संस्था में कई हजार लड़कियाँ उनसे प्रेरित । प्र दुष्ट । प्छत होकर सेवा-कार्य के लिए शामिल हो गईं । मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों, विधवाओं और रोगियों के लिए अनेक स्थानों पर केंद्र खोले । आज नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, यूगोस्लाविया, माल्टा, इंग्लैंड, दक्षिणी अमेरिका में मदर टेरेसा के सेवा केंद्र काम कर रहे हैं ।
मदर टेरेसा की निःस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री तथा 1980 में भारत-रत्न के सम्मान से विभूषित किया । 1979 में उन्हें नोबेल शान्ति पुरस्कार तथा 1971 में कैनेडियन राष्ट्रीय पुरस्कार तथा पोनजॉन शांति पुरस्कार प्राप्त हुए । इससे पहले 1962 में ही उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था ।
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