motivational poem in Hindi for about 2 minutes
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Koshish Kar Hal Niklega
कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नहीं तो, कल निकलेगा.
अर्जुन के तीर सा सध
मरूस्थल से भी जल निकलेगा.
मेहनत कर, पौधों को पानी दे
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा.
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे
फ़ौलाद का भी बल निकलेगा
जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को
गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा.
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा
कवि – आनंद परम | Anand Param
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
Koshish Karne Walon Ki Kabhi Haar Nahin Hoti
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफ़लता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
कवि – सोहन लाल द्विवेदी | Sohan Lal Dwivedi
रुके न तू, थके न तू
Ruke Na Tu, Thake Na Tu
धरा हिला, गगन गुंजा
नदी बहा, पवन चला
विजय तेरी, विजय तेरी
ज्योति सी जल, जला
भुजा-भुजा, फड़क-फड़क
रक्त में धड़क-धड़क
धनुष उठा, प्रहार कर
तू सबसे पहला वार कर
अग्नि सी धधक-धधक
हिरन सी सजग-सजग
सिंह सी दहाड़ कर
शंख सी पुकार कर
रुके न तू, थके न तू
झुके न तू, थमे न तू
सदा चले, थके न तू
रुके न तू, झुके न तू
समय को भी तलाश है
जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इनको वस्त्र तू
ये बेड़ियाँ पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
चरित्र जन पवित्र है
तोह क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं
की लें परीक्षा तेरी
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं
तू क्रोध की मशाल है
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
चूनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कपकपाएगा
अगर तेरी चूनर गिरी
तोह एक भूकंप आएगा
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
कवि – तनवीर गाज़ी | Tanveer Ghazi
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