Muhavare of kabir ki sakhi,meera,biharikl ke dohe
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These are from my grammar tb. All the best for boards.
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कबीर की साखी :
- ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई। अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
- कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
मीरा के पद :
- हरि आप हरो जन री भीर।
- द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर। भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर। बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।
बिहारी के दोहे :
- सतसइया के दोहरा ज्यों नावक के तीर। देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर।।
- नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल। अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।।
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