Munshi Premchand ki 'namak ka daroga kahani' ka bhao spasht karein.
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मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी उस युग की है जब भारत में नमक बेचने और बनाने पर कई तरह के कर लागू हो गए थे | इस प्रकार भ्रष्ट अधिकारियों की चांदी हो गई थी और नमक विभाग में काम करने वाले कर्मचारी दूसरे बड़े-बड़े विभागों की तुलना में अधिक ऊपरी कमाई कर रहे थे कहानी के नायक है मुंशी वंशीधर जो एक निर्धन और कर्ज में डूबे हुए परिवार के इकलौते कमाने वाले थे किस्मत से उन्हें नमक विभाग में दरोगा की नौकरी मिल जाती है अतिरिक्त आमदनी के अनेक मौके मिलने और वृद्ध पिता की अनेकों नसीहतों के बाद भी उनका मन धर्म से डिगने को नहीं चाहता एक दिन उन्हें अचानक नमक के बहुत बड़ी तस्करी के बारे में पता चल जाता है और वह उन्हें अचानक नमक के बहुत बड़ी तस्करी के बारे में पता चल जाता है और वह वहां पहुंच जाते हैं इस तस्करी के पीछे वहां के सबसे बड़े जमींदार अलोपीदीन का हाथ है जब पंडित अलोपीदीन को वहां बुलाया जाता है | वह बड़ी निश्चिंतता से आते हैं क्योंकि उन्हें पता था कि हर दरोगे को पैसे से खरीदा जा सकता है परंतु उनके इस विचार को गलत साबित करके उन्होंने अपनी ईमानदारी का सबूत दिया |
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