Munsi prem chandra or harisankar parsai ke uppar conclusion
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Munshi Premchand
हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है, जो अपने साहित्य और साहित्यकारों की दृष्टि से पर्याप्त समुन्नत कही जा सकती है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में समय-समय पर ऐसे अनेक साहित्यकार हुए हैं जिन्होंने अपने लेखन द्वारा देश ही नहीं विश्व की विचारधारा को भी प्रभावित किया। प्रेमचंद भी एक ऐसे साहित्यकार थे, जो सच्चे गांधीवादी और समाजहित के चिंतक और विचारक के रूप में हमारे सामने आते हैं।
प्रेमचंद का जन्म 1880 में काशी के निकट लमही गाँव में कायस्थ कुल में हुआ था। उनके बचपन का नाम धनपत राय था। पिता की अल्पायु में मृत्यु हो जाने के कारण इनका जीवन संघर्ष में बिता। स्कूल में बीस रुपये की अध्यापक की नोकरी करते हुए इन्होंने बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर स्कूलों के सब्डेप्यूटी इंस्पेक्टर हो गए, लेकिन गांधी जी से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी और देश-सेवा में जुट गए। इन्होंने हंस, मर्यादा, माधुरी पत्रिकाएं और जागरण पत्रों का संपादन किया। संघर्षों से जूझते हुए रोगग्रस्त होकर 1936 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
प्रेमचंद उपन्यास सम्राट और प्रसिद्ध कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। पहले ये 'नवाबराय' नाम से उर्दू में और बाद में प्रेमचंद नाम से हिन्दी में लिखने लगे। इनके सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गोदान, गबन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवा सदन आदि हैं। इन्होंने लगभग 300 कहानियां और कुछ नाटक भी लिखे।
वस्तुतः प्रेमचंद एक ऐसे मानवतावादी उपन्यासकार और कहानीकार थे जिन्होंने दलित मानवता को ऊपर उठाने के लिए ही अपनी लेखनी चलाई। वे ऐसे प्रथम उपन्यासकार कहे जा सकते हैं जिन्होंने उस समय की सामंती व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करते हुए निम्न मध्यमवर्गीय जन को सांत्वना और सहानुभूति देकर विकास का ठोस आधार दिया। इसीलिए उन्हें साहित्य में उपन्यास सम्राट कहा जाता है।
- Answered by Arya Priya