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बंदर ,मुर्गा और अमरूद का पेड (मन में कोई बात ना रखें)
बंदर ,मुर्गा और अमरूद का पेड (मन में कोई बात ना रखें)
बंदर मुर्गा और अमरूद का पेड (मन में कोई बात ना रखें)
Renu Gupta 4 weeks ago कहानियाँ Leave a comment 1,991 Views
बंदर ,मुर्गा और अमरूद का पेड*
“बंदर ,मुर्गा और अमरूद का पेड” इस कहानी में यह दर्शाया गया है कि आप कोई भी बात जो किसी की अच्छी है या फिर बुरी है जो भी आपके मन में है खुलकर आपको उस मनुष्य से कर लेनी चाहिए,ना कि उसके प्रति द्वेष या ईष्या का भाव या फिर गलतफहमी नहीं रखनी चाहिए.
एक सुनहरा मुर्गा था. वह अपने आप में एक ही था ,इसीलिए उस पर बहुत से कसाईयों की नजर थी .एक बंदर था वह काला था वह भी अपने आप में एक ही था. इसीलिए उसे चिड़ियाघर के लोग पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और एक लाल अमरूद का पेड़ था वह पेड़ भी अपने आप में एक ही था .उसके जैसा कोई दूसरा पेड़ नहीं था .इसीलिए फलवाले और बच्चे उस पेड़ के अमरूदों का लालच करते थे.
तीनों इस बात से बहुत परेशान थे क्योंकि उन पर कई लोगों की बुरी नजर थी .एक दिन उन तीनों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनका कोई भी कुछ भी ना बिगाड़ पाए .जब कोई कसाई मुर्गे को पकड़ने आता तो अमरूद का पेड़ 2-3 अमरूद नीचे टपका देता जिससे कसाई अमरुद उठाने के लालच में मुर्गे पर से ध्यान हट जाता था और इसी बीच बंदर 1-2 कच्चे अमरुद तोड़ कर उस कसाई के सिर पर मार देता था और कसाई को चोट लग जाती और इस बीच बंदर मुर्गे को पीठ पर बैठा कर भाग जाता था .
और जब चिड़िया घर के लोग बंदर को पकड़ने जाते तब पेड़ अपनी पत्तियों में बंदर को छुपा लेता था और मुर्गा जोर -जोर से अपने पंख फड़फड़ा कर इतनी धूल उड़ा देता था कि वहां पर खड़े लोग परेशान हो जाते थे उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगती थी और वहां से हट जाते थे.
और जब फलवाले और बच्चे अमरूद के पेड़ से फल तोड़ने आते थे तो बंदर उन्हें डरा कर वहां से भगा देता था और अगर उन लोगों के पास कोई खाने पीने का सामान होता तो वह भी छीन कर खा जाता था .इसीलिए डर के मारे कोई भी अमरूद के पेड़ के पास नहीं आता था इस तरह से तीनों एक दूसरे का साथ देते हुए मजे की जिंदगी जी रहे थे .
एक बार काले बादल घिरकर आ गए और मूसलाधार बारिश होने लगी ओले भी गिरने लगे. उन तीनों ने एक साथ ना मिल कर बल्कि अपना -अपना बचाव कर करने की योजना बनाई.उस दिन इन तीनों ने एक-दूसरे की परेशानी के बारे में नहीं सोचा बल्कि एक दूसरे के बारे में गलत ही भावना उत्पन्न की जैसे कि -पेड़ अपनी जगह परेशान था ओलों से उसके सब अमरुद नष्ट हो रहे थे .बंदर का अपनी जगह भीग कर बुरा हाल था ऊपर से ओलों की मार उसकी जान ले रही थी .मुर्गा भी बुरे हाल था पानी से भीग जाने के कारण उसके पंख बहुत भारी हो गए थे और खुल भी नहीं पा रहे थे और ऊपर से ओलों की चोट भी उस पर पढ़ रही थी .
पेड़ ने सोचा यह दोनों तो किसी भी काम के नहीं मैंने इनका हर मुसीबत में साथ दिया पर आज मुझ पर इतनी बड़ी मुसीबत आई है तो इन्हें अपनी-अपनी पड़ी है .मेरा हाल तक नहीं पूछ रहे और इधर बंदर सोचने लगा कि मैंने कैसे साथी चुने हैं जिसमें एक पेड़ है जो जमीन पर खड़ा हुआ है और पूरी तरह से सुरक्षित है, दूसरा पक्षी है जिसे आकाश में उड़ सकने के कारण कोई भी खतरा नहीं है. आज तक ये मुझसे अपनी रखवाली करवाते रहे और आज जब मुझ पर मुसीबत पड़ी है तो यह दोनों चुपचाप है मेरी कोई भी मदद नहीं कर रहा .
और इधर मुर्गा सोचने लगा पेड़ और बंदर का तो हमेशा का साथ है मैं बेवकूफ इन लोगों के बीच बेकार ही फस गया .आज तक मैंने इनका हर मुसीबत में साथ दिया पर आज मेरी जान पर बन आई है तो यह लोग मजे से बारिश में नहा रहे हैं और मेरी मुझे कोई भी नहीं पूछ रहा .
इस तरीके से तीनों परेशान थे पर तीनों एक दूसरे की मुसीबत को बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहे थे वह मन मैं यह सोच रहे थे कि मैं ही दुखी हूं और दोनों सुखी हैं. वे तीनों इतने नाराज हो गए उन्होंने आपस में बात तक नहीं की .पेड़ अपने अमरूदों को नष्ट होते हुए देखता रहा और बंदर चुपचाप ठिठुरता रहा ,मुर्गा चुपचाप अपने आप में कुड्ता रहा ,पर उन्होंने अपने दुख के बारे में ही सोचा अपने दोस्तों के दुख के बारे में नहीं सोचा और ना ही इस बारे में एक दूसरे से सलाह मशवरा तक करा थोड़ी देर बाद बारिश और ओले थम गए पर तीनों मन ही मन एक दूसरे से नाराज हो गए और आपस में बात करनी बंद कर दी.
पेड़ ने सोचा इतनी बारिश हो रही थी और यह बंदर मेरी मदद करने की बजाए मुझ पर बोझ बना बैठा रहा और मुर्गा भी उसकी डाल पर बैठा पंख फड़फड़ाता रहा ,बंदर को भी गुस्सा आ रहा था वह मन ही मन सोच रहा था मेरा ठंड से कितना बुरा हाल हो रहा है और यह पेड़ है कि मुझ पर बूंदी टपकाई जा रहा है और यह मुर्गा अपने पंखो को फड़फड़ा कर मुझ पर पानी की छींटे फेक रहा है और मुर्गा भी अंदर ही अंदर कूड् कर कह रहा था कि पानी की मार से मेरा शरीर जवाब दे रहा है और पेड़ ने जरा सी भी जमीन को सुखाकर नहीं रखा जहां पर मैं बैठ जाऊं और अपने आप को सुखालू और इस बंदर से तो इतना भी नहीं हो रहा कि वह मुझे किसी और सुरक्षित जगह पहुंचा दें.
अगले दिन धूप से पेड़ की टहनियों पर पड़ा पानी सूख गया बंदर का शरीर भी ठंडक से गरमाई महसूस करने लगा मुर्गे के पंख भी सूख गए पर तीनों ने आपस में कोई बात नहीं करी और ना ही अपनी समस्या को कहा तीनों आपस में मन ही मन कह रहे थे अब इन लोगों पर कोई समस्या आए तब मैं देख लूंगा मैं इनकी कोई भी मदद नहीं करूंगा अब देखें कौन बचाता है .
उसी दिन कसाई आया वह मुर्गे की तरफ पढ़ने लगा तो अमरूद के पेड़ ने अपने पेड़ से कोई भी अमरुद ना गिराए और ना ही बंदर ने मुर्गे को अपनी पीठ पर बैठाया .दोनों सोचने लगे अब पता चलेगा मुर्गे को बड़ा बनता फिरता था और कसाई आखिर में मुर्गे को बड़े आराम से दबोच कर अपने साथ ले गया .