Hindi, asked by tanishpundir9084, 9 months ago

Musibat ke samay ekta ka mahatv thoda bada answer dena

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Answered by ᴅʏɴᴀᴍɪᴄᴀᴠɪ
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Answer:

hi friend

Explanation:

एक होने के भाव को ‘एकता’ कहते हैं। किसी काम को करते समय हाथ की पांचों उंगलियों का एक होना, तिनकों को मिलाकर रस्सी का निर्माण, ईंटों के संयोग से दीवार का निर्माण, कुछ व्यक्तियों के मेल से परिवार का निर्माण एवं छोटे-छोटे राज्यों के संयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण इत्यादि एकता के कुछ दृष्टान्त हैं। यदि मानव परस्पर पृथक-पृथ्क होकर विचार एवं कार्य करे तो उसकी प्रगति असम्भव है एवं उसका पालन धु्रव सत्य है। अतः व्यक्ति को मन, वचन और कर्म से एक होकर कार्य करना चाहिए। यही एकता है।

एकता के महत्व से सम्बन्धित अनेक लोकोक्तियां प्रचलित है। यथा- संघे शक्तिः कलौयुगे; दस की लाठी एक का बोझ; अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इत्यादि। एक तिनके की क्या हस्ती लेकिन जब वही तिनका संगठित होकर रस्सी बन जाता है। तब इससे बलशाली हाथी भी बंध जाता है। एक ईट की क्या बिसात लेकिन, जब यही ईट मिलकर दीवार बनती है, तब उसे तोड़ना मुश्किल हो जाता है। एक बूंद जल का क्या अस्तित्व लेकिन जब इन्हीं बूंदों के मेल से सागर का निर्माण होता है तो उसे लांघना दुष्कर हो जाता है। एक चीटीं की क्या औकात। लेकिन जब यही चीटीं एकजुट हो जाती है तब अपने से बड़े आकार के जीवों को चट कर जाती है।

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Answered by chaurasiyarishabh135
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Answer:

एक होने के भाव को ‘एकता’ कहते हैं। किसी काम को करते समय हाथ की पांचों उंगलियों का एक होना, तिनकों को मिलाकर रस्सी का निर्माण, ईंटों के संयोग से दीवार का निर्माण, कुछ व्यक्तियों के मेल से परिवार का निर्माण एवं छोटे-छोटे राज्यों के संयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण इत्यादि एकता के कुछ दृष्टान्त हैं। यदि मानव परस्पर पृथक-पृथ्क होकर विचार एवं कार्य करे तो उसकी प्रगति असम्भव है एवं उसका पालन धु्रव सत्य है। अतः व्यक्ति को मन, वचन और कर्म से एक होकर कार्य करना चाहिए। यही एकता है।

एक होने के भाव को ‘एकता’ कहते हैं। किसी काम को करते समय हाथ की पांचों उंगलियों का एक होना, तिनकों को मिलाकर रस्सी का निर्माण, ईंटों के संयोग से दीवार का निर्माण, कुछ व्यक्तियों के मेल से परिवार का निर्माण एवं छोटे-छोटे राज्यों के संयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण इत्यादि एकता के कुछ दृष्टान्त हैं। यदि मानव परस्पर पृथक-पृथ्क होकर विचार एवं कार्य करे तो उसकी प्रगति असम्भव है एवं उसका पालन धु्रव सत्य है। अतः व्यक्ति को मन, वचन और कर्म से एक होकर कार्य करना चाहिए। यही एकता है।एकता के महत्व से सम्बन्धित अनेक लोकोक्तियां प्रचलित है। यथा- संघे शक्तिः कलौयुगे; दस की लाठी एक का बोझ; अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इत्यादि। एक तिनके की क्या हस्ती लेकिन जब वही तिनका संगठित होकर रस्सी बन जाता है। तब इससे बलशाली हाथी भी बंध जाता है। एक ईट की क्या बिसात लेकिन, जब यही ईट मिलकर दीवार बनती है, तब उसे तोड़ना मुश्किल हो जाता है। एक बूंद जल का क्या अस्तित्व लेकिन जब इन्हीं बूंदों के मेल से सागर का निर्माण होता है तो उसे लांघना दुष्कर हो जाता है। एक चीटीं की क्या औकात। लेकिन जब यही चीटीं एकजुट हो जाती है तब अपने से बड़े आकार के जीवों को चट कर जाती है।

एक होने के भाव को ‘एकता’ कहते हैं। किसी काम को करते समय हाथ की पांचों उंगलियों का एक होना, तिनकों को मिलाकर रस्सी का निर्माण, ईंटों के संयोग से दीवार का निर्माण, कुछ व्यक्तियों के मेल से परिवार का निर्माण एवं छोटे-छोटे राज्यों के संयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण इत्यादि एकता के कुछ दृष्टान्त हैं। यदि मानव परस्पर पृथक-पृथ्क होकर विचार एवं कार्य करे तो उसकी प्रगति असम्भव है एवं उसका पालन धु्रव सत्य है। अतः व्यक्ति को मन, वचन और कर्म से एक होकर कार्य करना चाहिए। यही एकता है।एकता के महत्व से सम्बन्धित अनेक लोकोक्तियां प्रचलित है। यथा- संघे शक्तिः कलौयुगे; दस की लाठी एक का बोझ; अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इत्यादि। एक तिनके की क्या हस्ती लेकिन जब वही तिनका संगठित होकर रस्सी बन जाता है। तब इससे बलशाली हाथी भी बंध जाता है। एक ईट की क्या बिसात लेकिन, जब यही ईट मिलकर दीवार बनती है, तब उसे तोड़ना मुश्किल हो जाता है। एक बूंद जल का क्या अस्तित्व लेकिन जब इन्हीं बूंदों के मेल से सागर का निर्माण होता है तो उसे लांघना दुष्कर हो जाता है। एक चीटीं की क्या औकात। लेकिन जब यही चीटीं एकजुट हो जाती है तब अपने से बड़े आकार के जीवों को चट कर जाती है।एकता के महत्व से सम्बन्धित एक किसान, उसके बच्चे और लकड़ी के टुकड़ों की कथा प्रचलित है। लकड़ी के टुकड़े जब अलग-अलग रहते हैं।, तब बच्चों द्वारा वे आसानी से तोड़ दिए जाते हैं। परन्तु वे ही टुकड़े जब संगठित होकर गट्ठर बन जाते हैं। तब बच्चे उसे तोड़ नहीं पाते हैं, इन दृष्टान्तों से स्पष्ट है कि एकता में ही बल है।ेे

एक होने के भाव को ‘एकता’ कहते हैं। किसी काम को करते समय हाथ की पांचों उंगलियों का एक होना, तिनकों को मिलाकर रस्सी का निर्माण, ईंटों के संयोग से दीवार का निर्माण, कुछ व्यक्तियों के मेल से परिवार का निर्माण एवं छोटे-छोटे राज्यों के संयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण इत्यादि एकता के कुछ दृष्टान्त हैं। यदि मानव परस्पर पृथक-पृथ्क होकर विचार एवं कार्य करे तो उसकी प्रगति असम्भव है एवं उसका पालन धु्रव सत्य है। अतः व्यक्ति को मन, वचन और कर्म से एक होकर कार्य करना चाहिए। यही एकता है।एकता के महत्व से सम्बन्धित अनेक लोकोक्तियां प्रचलित है। यथा- संघे शक्तिः कलौयुगे; दस की लाठी एक का बोझ; अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इत्यादि। एक तिनके की क्या हस्ती लेकिन जब वही तिनका संगठित होकर रस्सी बन जाता है। तब इससे बलशाली हाथी भी बंध जाता है। एक ईट की क्या बिसात लेकिन, जब यही ईट मिलकर दीवार बनती है, तब उसे तोड़ना मुश्किल हो जाता है। एक बूंद जल का क्या अस्तित्व लेकिन जब इन्हीं बूंदों के मेल से सागर का निर्माण होता है तो उसे लांघना दुष्कर हो जाता है। एक चीटीं की क्या औकात। लेकिन जब यही चीटीं एकजुट हो जाती है तब अपने से बड़े आकार के जीवों को चट कर जाती है।एकता के महत्व से सम्बन्धित एक किसान, उसके बच्चे और लकड़ी के टुकड़ों की कथा प्रचलित है। लकड़ी के टुकड़े जब अलग-अलग रहते हैं।, तब बच्चों द्वारा वे आसानी से तोड़ दिए जाते हैं। परन्तु वे ही टुकड़े जब संगठित होकर गट्ठर बन जाते हैं। तब बच्चे उसे तोड़ नहीं पाते हैं, इन दृष्टान्तों से स्पष्ट है कि एकता में ही बल है।ेेलेकिन आज जातीयता, साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रीयता हमारी एकता की नींव को भीतर ही भीतर खोखली करती जा रही है। आज जगह-जगह जातीय हिंसा एवं अगड़े-पिछड़े के बीच दंगों से हमारी शक्ति बिखर रही है। राष्ट्रीय एकता की लौ मद्धिम पड़ती जा रही है। इसी फूट के कारण एक दिन विदेशी हमारे शासक बन बैठे थे। हम पुनः गुलाम न बन जाएं, इसके लिए हमें पहले से ही सचेष्ट रहना चाहिए। यह तभी सभ्भव है, जब हम भारतवासी क्षुद्र स्वार्थपरक राजनीति से ऊपर उठकर घर की फूट को रोकें।

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