Muslim log ke dri rastye sidhant se aap Kya samajhte hai?
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1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दस साल बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मुख्य संस्थापक सय्यद अहमद ख़ान ने ये कभी माना ही नहीं था कि भारत आजाद होगा। 1857 की क्रांति का जिम्मेदार अंग्रेज मुसलमानों को समझते थे इसलिए अंग्रेज मुसलमानों के प्रति गुस्सा रखते थे मुसलमान पिछड़ते गए इसलिए सर सय्यद अहमद खान ने कहा कि मुसलमानों को अंग्रेजो की कृपा चाहिए। उन्होंने मुस्लिमो को स्वतंत्रता आंदोलन से हटने के लिए कहा और अंग्रेजो की स्वामी भक्ति के लिए बोला था।
सन् 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा के 19वें वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में सावरकर ने कहा था- फिलहाल हिंदुस्तान में दो प्रतिद्वंदी राष्ट्र पास-पास रह रहे हैं. कई अपरिपक्व राजनीतिज्ञ यह मानकर गंभीर गलती कर बैठते हैं कि हिंदुस्तान पहले से ही एक सद्भावपूर्ण राष्ट्र के रुप में ढल गया है या सिर्फ हमारी इच्छा होने से ही इस रूप में ढल जाएगा. इस प्रकार के हमारे नेक नीयत वाले पर लापरवाह दोस्त मात्र सपनों को सच्चाईयों में बदलना चाहते हैं. दृढ़ सच्चाई यह है कि तथाकथित सांप्रदायिक सवाल औऱ कुछ नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से हिंदू और मुसलमान के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय प्रतिद्वंदिता के नतीजे में हम पहुंचे हैं. आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एक एकता में पिरोया हुआ और मिलाजुला राष्ट्र है. बल्कि इसके विपरीत हिंदुस्तान में मुख्यतौर पर दो राष्ट्र हैं- हिंदू और मुसलमान.
मुस्लिम नेतृत्व और द्विराष्ट्र सिद्धांत संपादित करें
अलीगढ़ संपादित करें
मुहम्मद इक़बाल संपादित करें
यूरोप में अध्ययन और मस्जिद कॉर्डोबा में अज़ान देने के बाद मुहम्मद इक़बाल ने व्यावहारिक राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। तो यह राजनीतिक विचारधारा सामने आए। 1930 में इलाहाबाद में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के इक्कीसवीं वार्षिक बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने न केवल द्विराष्ट्र सिद्धांत खुलकर समझाया बल्कि इसी सिद्धांत के आधार पर उन्होंने हिन्दुस्तान में एक मुस्लिम राज्य की स्थापना की भविष्यवाणी भी की थी।
मुहम्मद अली जिन्नाह संपादित करें
इन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत के बारे में कहा था -हिन्दू मुस्लिम एक राष्ट्र नहीं बल्कि दो राष्ट्र हैं।