Hindi, asked by kumariTejaswini, 5 hours ago

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Answered by komalamot
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विद्यालय शिक्षा प्रदान करने के केंद्र होते हैं। इनमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती है। तीन-चार वर्ष के नन्हें-नन्हें बालक-बालिकाएँ इनमें प्रवेश करते हैं और सत्रह-अठारह वर्ष की आयु में बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करके जीवन के नए क्षेत्र में पदार्पण करते हैं।

विद्यालय का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्व होता है। विद्यालयों का जैसा स्तर होता है, उनसे शिक्षा ग्रहण करके निकले विद्यार्थियों का वैसा ही शैक्षिक स्तर होता है। विद्यालय कई प्रकार के होते हैं। नगर निगमों द्वारा चलाए जाने वाले विद्यालय प्रायः प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्रदान करते हैं। राज्य सरकारों द्वारा संचालित विद्यालयों में उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती है। श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने वाले पब्लिक स्कूल होते हैं। इन्हें निजी संस्थाएँ चलाती हैं।

मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं एक विद्यालय खोलूँ जो आदर्श विद्यालय हो। इसमें नर्सरी से बारहवीं कक्षा तक की उच्चस्तरीय शिक्षा प्रदान की जाएगी। शिक्षा प्रदान करने का दायित्व अध्यापक-अध्यापिकाओं पर निर्भर करता है। मैं इस विद्यालय में उच्चतम शिक्षा प्राप्त अध्यापक-अध्यापिकाओं को नियुक्त करूँगा। उन्हें अन्य विद्यालयों की अपेक्षा अधिक वेतन दूंगा। उन्हें विद्यालय परिसर में ही आवास प्रदान किए जाएंगे। उनको सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्रदान की जाएँगी। मेरा प्रयास होगा कि वे सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त रहें। ऐसे अध्यापक-अध्यापिकाएँ पूर्ण रूप से विद्यालय के उच्च स्तर निर्माण में अपना योगदान करेंगे। वे पूर्णतया विद्यार्थियों के हित के लिए समर्पित रहेंगे।

विद्यालय परिसर में छात्रावास बनाया जाएगा। इसमें दो तरह के विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था होगी। ऐसे प्रतिभावान विद्यार्थी जिनके माता-पिता निर्धन होंगे उन्हें छात्रावास में रखा जाएगा। उनके भोजन, निवास और शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था होगी। दूसरे वे विद्यार्थी होंगे जो अनुशासनबद्ध रहकर सच्चे अर्थों में शिक्षा ग्रहण करना चाहेंगे।

विद्यालय में विज्ञान की बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएँ होंगी। इनमें नए-नए प्रयोग करने की सुविधा रहेगी। ये सभी प्रकार के उपकरणों से सुसज्जित होंगी। विद्यालय का कंप्यूटर-विभाग सबसे बड़ा होगा। विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी के लिए कंप्यूटर सीखना अनिवार्य होगा। नर्सरी के नन्हें बच्चे से लेकर बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थी जब कंप्यूटर सीखकर निकलेंगे तो वे देश को नए युग में ले जाएँगे।

विद्यालय के खेल-कूद विभाग में सभी प्रकार के खेलों के सामान उपलब्ध होंगे। विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को नियुक्त किया जाएगा। उनकी देखरेख में विद्यार्थी खेलों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण ग्रहण कर सकेंगे। इस प्रकार वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम ऊँचा कर सकेंगे।

विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर बल दिया जाएगा। हिंदी और अंग्रेजी भाषा में कविता, वाद-विवाद, निबंध लेखन, नाटक आदि के कार्यक्रम आयोजित कराए जाएंगे। भारतीय संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का बहुत महत्व होता है। संगीत और नृत्य के साथ-साथ चित्रकला और मूर्तिकला आदि विभागों की स्थापना की जाएगी।

विद्यालय में चरित्र-निर्माण और अनुशासन पर सबसे अधिक बल दिया जाएगा। अध्यापक-अध्यापिकाओं और विद्यार्थियों की वेशभूषा आदर्श होगी। अध्यापिकाओं की वेशभूषा इस प्रकार की होगी जिससे छात्राओं में शालीनता का भाव जाग्रत हो सके। प्रत्येक अध्यापक-अध्यापिका बारी-बारी से प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में अपने विचार रखा करेंगे। प्रत्येक विद्यार्थी एक बार प्रार्थना सभा को अवश्य संबोधित करेगा।

मेरे सपनों के विद्यालय में सभी धर्मों के प्रति समान आदर भाव जाग्रत करने के लिए भिन्न-भिन्न त्योहार मनाए जाएंगे। महापुरुषों की जयंतियाँ आयोजित की जाएंगी। विद्यालय की पत्रिका में सर्वधर्म समभाव की रचनाएँ प्रकाशित की जाएँगी। मेरे सपनों के विद्यालय में सभी विद्यार्थी इतने योग्य होंगे कि वे अनुत्तीर्ण शब्द को ही भूल जाएँगे।

मेरा सपना पूरा होगा, यह मैं नहीं जानता। कहते हैं सपने देखना बुरा नहीं होता। यदि सपने नहीं देखेंगे तो उन्हें पूरा करने की भावना कैसे जाग्रत होगी? संभव है मेरे पास बहुत धन आ जाए। संभव है कि मैं देश का शिक्षामंत्री बन जाऊँ। तब तो मेरे सपनों का विद्यालय अवश्य बन जाएगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं एक दिन ऐसा आदर्श विद्यालय बनाऊँगा

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