न 25-निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या लिखिए।
बानी जगरानी की उदारता बरवानी जाइ,
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध,
कहि-कहि हारे सब कहि न काहू लई ।"
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बानी जगरानी की उदारता बरवानी जाइ,
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध,
कहि-कहि हारे सब कहि न काहू लई ।
संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘केशवदास’ द्वारा रचित ‘सरस्वती वंदना शीर्षक से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने माँ सरस्वती की उदारता का वर्णन किया है।
व्याख्या : कवि कहते हैं कि जगत में परम पूजनीय सरस्वती देवी की उदारता का वर्णन करना संभव नहीं। संसार में ऐसी कोई सर्वश्रेष्ठ बुद्धि नहीं, जो देवी सरस्वती की उदारता का सही प्रकार से वर्णन कर सके। बड़े-बड़े देवता, सिद्ध, मुनि, ऋषि, तपस्वी, विद्वान आदि सभी कह-कह कर हार गए, लेकिन कोई भी उनकी उदारता की थाह नहीं पा सका। भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले सभी लोगों ने उनकी उदारता का वर्णन किया।
कवि केशवदास कहते हैं कि सरस्वती देवी की दया और उदारता की कोई तुलना नहीं कर सकता। उनके पति ब्रह्मा, पुत्र शंकर और नाती कार्तिकेय ने भी देवी सरस्वती की उदारता का वर्णन किया था, लेकिन वह भी उनकी उदारता का पार नहीं पा सके।
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