(ङ) बादलों की गोद से निकली बूंद अंत में
बन गई।
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ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी। दैव मेरे भाग्य में है क्या बदा मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ? या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी चू पड़ूँगी ...
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