निबंध- अगर मैं अध्यापिका होती
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मनुष्य एक संज्ञावान प्राणी हैं. इसलिए उसके मन में कुछ न कुछ आकांक्षाएं जन्म लेती रहती हैं. जिन्हें वह फलीभूत होते हए देखना चाहता हैं. प्रत्येक विद्यार्थी भी अपने जीवन में बड़ा बनना चाहता हैं.
इसके वह वह प्रारम्भ से ही प्रयास करना आरम्भ कर देता हैं. किसी के मन में इंजीनयर बनने की तो किसी के मन में डॉक्टर बनने की इच्छा होती हैं. कोई नेता, कोई उच्चाधिकारी तो कोई अध्यापक बनने की लालसा ह्रदय में लिए रहता हैं.
मेरी आकांक्षा-मैं भी अपने जीवन में कुछ बनना चाहता हूँ. जिसके माध्यम से समाज और राष्ट्र की सेवा कर सकू. इस ध्येय की पूर्ति के लिए मैंने अध्यापक बनने का निश्चय किया हैं. यही मेरी आकांक्षा हैं. इस पर मैंने भली प्रकार विचार कर लिया हैं. कि मैं अध्यापक होता तो क्या करता ?
आदर्श अध्यापक का स्वरूप- मैं एक आदर्श अध्यापक बनने का प्रयास करता, क्योंकि अध्यापक अपने विद्यार्थियों के लिए हर दृष्टि से आदर्श होता हैं. उसके प्रत्येक कार्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षार्थी पर प्रभाव डालते हैं. मैं अपने और अपने व्यवहार को ऐसा बनाता जिसका अनुकरण मेरे विद्यार्थी कर सकते.
छात्रों का मार्गदर्शक- यदि मैं अध्यापक होता तो मैं उनकी पढ़ाई का पूरा ध्यान रखता और इस बात की सोच रखता कि उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण मेरे हाथ में हैं. मैं उन्हें सादा जीवन उच्च विचार के साथ जीने की प्रेरणा देता. उनके साथ हमेशा अग्रज की तरह व्यवहार करता, उनका सच्चा मार्गदर्शन भी होता. मैं निर्धन छात्रों की हर तरह से मदद करता.
उपसंहार- अध्यापक देश के भावी नागरिकों का निर्माता होता हैं. उसके ही सही दिशा निर्देश से भावी पीढ़ी का निर्माण होता हैं. यदि मैं अध्यापक होता तो मैं एक आदर्श अध्यापक के सभी गुणों का निर्वहन करता हुआ अपने दायित्वों को अच्छी तरह से संभालता. धन नहीं हमारे लिए हमारा छात्र ही सब कुछ होता.
Answer:
रात्रि को सोने से पूर्व मैं किसी धार्मिक पुस्तक का अध्ययन अवश्य करता हूं। इससे नींद में बुरे विचार और खराब सपने नहीं आते। आज महर्षि अरविंद के विचार नामक पुस्तक पढ़ रहा था। उन्होंने अध्यापक के संबंध में लिखा है अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं।
महर्षि अरविंद के इन विचारों को पढ़कर उपर्युक्त अंग्रेजी अध्यापक की महत्ता साबित हो गई। अपने स्वार्थवश छात्रों को अनुतीर्ण कर हतोत्साहित करना और फिर ट्यूशन के लिए प्रेरित करना वर्तमान अध्यापकों के जीवन की भूमिका है। इसी क्रम में अनेक विचार मन में उठते रहे और इसी अंतर्द्वंद में एक विचार भी हृदय में जागृत हुआ कि मैं अध्यापक बनूंगा। कितनी अच्छी कल्पना है। यदि मैं अध्यापक होता तो अंग्रेजी अध्यापक के समान धन लोभ के कारण छात्रों से अनुचित व्यवहार ना करता। अर्धवार्षिक परीक्षा में छात्रों को असफल कर ट्यूशन रखने का अर्थ अपने कर्तव्य की अवहेलना है। यदि मैं अध्यापक होता तो मैं अपने कर्तव्य के प्रति हमेशा जागरुक रहता।
अंग्रेजी विदेशी भाषा है। इसको पढ़ाने के लिए मैं अत्यंत सावधानी और परिश्रम से काम लेता। पाठ पढ़ाते हुए पहले पाठ के एक अनुच्छेद कक्षा में दो से तीन बार उच्चारण करवाता। फिर उस अनुच्छेद का आशय छात्रों को समझाता। एक-एक वाक्य का अर्थ करते हुए अनुच्छेद की पूर्णता मेरी पद्धति नहीं होती बल्कि एक शब्द को लेता एक-एक शब्द का अर्थ विद्यार्थियों से पूछता। जो उन्हें नहीं आता वह बताता और आदेश देता कि वे अपनी कॉपी पर साथ-साथ लिखते चले। एक एक शब्द के पश्चात वाक्य का शब्दार्थ करते हुए किया भावपूर्ण अर्थ बताता। जो छात्र कॉपी में लिखना चाहते हैं उन्हें लिखने का अवसर देता। एक अनुच्छेद में यदि एक बार एक शब्द आता तो मैं यथास्थान बार-बार उसका अर्थ दोहराता। अनुच्छेद समाप्ति पर उसमें आए वचन, लिंग तथा क्रिया संबंधी रूपों को स्पष्ट करता हुआ डायरेक्ट इनडायरेक्ट भी समझाता।
उसके बाद जो पाठ जितना भी पढ़ाया है उसके अर्थ तथा वाक्यों का अनुवाद लिखकर लाने का आदेश देता। बच्चों को निर्देश देता कि वह पाठ के उन्हीं शब्दों के अर्थ लिखकर लाएं जो उन्हें कठिन लगते हैं अनुवाद में सरलता ही नहीं उन का अनुवाद भी समझाता।
सप्ताह का एक दिन निबंध पत्र के लिए निश्चित करता। जिस दिन निबंध या पत्र का क्रम होता उससे पूर्व विद्यार्थियों को परामर्श देता कि वह घर में किसी भी निबंध की पुस्तक से निबंध विशेष को पढ़कर आए। निबंध के पीरियड में मैं कक्षा में निश्चित विषय पर अपने विचार प्रकट करता। इस विचार विमर्श के बीच में निबंध से संबंधित कुछ सुंदर शब्दों का अर्थ सहित कॉपी पर लिखवाता। कुछ श्रेष्ठ वाक्यों को भी कॉपी पर अंकित करवा देता। अगले सप्ताह छात्रों से उसी विषय पर कक्षा में ही निबंध लिखवाता। यही शैली पत्र लिखवाने के लिए भी अपनाता। इससे बच्चों को स्वयं निबंध तथा पत्र लिखने के लिए प्रोत्साहन मिलता और वे पुस्तक से नकल करने की आदत ग्रहण ना करते।
एक कार्य जो मैं अत्यंत निष्ठा से करता वह होता कॉपी लिखने का। मैं एक-एक अक्षर पढ़कर प्रत्येक छात्र की कॉपी शुद्ध करता। इसमें समय तो बहुत लगता है किंतु छात्र की बुनियाद सुदृढ़ करने का उपाय यही है। कांपिया लौटाते समय प्रत्येक विद्यार्थी का ध्यान उसकी व्यक्तिगत गलतियों और भूलों की और दिलवाता। साथ ही कक्षा में अपने ही सामने एक एक गलती को पांच-पांच बार लिखवाता। अध्यापक के आचरण का छात्रों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। यदि मैं अध्यापक होता तो मेरा यह प्रयास होता कि मेरी व्यक्तिगत दुर्बलताओं का प्रदर्शन छात्रों के सामने बिल्कुल ना हो पाए। जैसे मुझे सिगरेट पीने का चस्का है किंतु मैं अपनी इच्छा पर इतना नियंत्रण रखूं कि विद्या के मंदिर में सरस्वती की आराधना करते समय यह दुर्व्यसन मुझे स्पर्श ना कर पाए।
मेरा यह निश्चित सिद्धांत होता कि काम न करने वाले छात्र परिस्थितियों को समझूं और उसे वही काम स्कूल के पश्चात जीरो पीरियड में करवाऊं। ‘भय बिन होय न प्रीति’ लोकोक्ति है किंतु मैं यथासंभव अपने स्नेह और व्यक्तित्व के प्रभाव से छात्रों से काम करवाता। हां कभी-कभी केवल अति उद्दंड छात्रों को दंड भी देता।