निबंध - बाढपीडित की आत्मकथा
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मैं पिछले महीने अपने चाचा की शादी के लिए बिहार के राजेंद्रनगर में आई थी। अगस्त का मौसम था। अत: यहाँ बहुत वर्षा हो रही थी। परन्तु हमारे पहुँचने के बाद यहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा होने के कारण पुनपुन नदी में बाढ़ आ गई। इसका परिणाम यह हुआ की पुनपुन का पानी बहकर राजेंद्रनगर में पहुँच गया। सही समय में सूचना मिलने पर लोग ऊँचे स्थानों पर चले गए। बरसात का मौसम होने के कारण वर्षा रुक-रुककर होने से पुनपुन का जल स्तर कम नहीं हो रहा था। दस दिनों से हम फंसे रहे थे। इन दिनों में यहाँ कि हालत बहुत ही खराब हो चुके थे। पानी के शहर में घुसने से चारों तरफ की धरती जलमग्न हो चुकी थी। जिससे लोग खाने-खाने के लिए मोहताज हो रहे थे। पानी संबंधी बीमारियों ने लोगों को त्रस्त किया हुआ था। बदबू तथा भूखमरी के कारण लोग चोरी तथा लूटपाट कर रहे थे। सरकार द्वारा जो पैकेट फेंके जाते थे, उनके लिए लोग ऐसे झपट रहे थे कि मार पिटायी तक बात आ जाती थी। कुछ लोग तो चूहों को भून कर खा रहे थे। मलेरिया, हैजा, पीलिया आदि बीमारी के कारण लोग मरने लगे थे। यहाँ से निकलने के तमाम रास्ते बंद हो चुके थे। किसी से संपर्क साधना भी कठिन हो चुका था। बड़ी मुश्किल से हम स्वयं सेवी संगठनों की मदद से यहाँ से बाहर तो निकल पाए। उस घटना को याद करके आज भी दिल दहल जाता है।
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