निबंध- बढती जन संख्या एव संसाधनों में संतुलन विषय पर संकेत विन्दु के आधार पर निबंध लिखे I
संकेत विन्दु- बढती जन संख्या व घटते संसाधन जनसँख्या के बढ़ते के कारण दुस्प्रमाक जागरूकता रोकथाम के उपाय संधाधनो में बढ़ोतरी उपसंहार I
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किसी भी देश में जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुँच जाती है तो संसाधनों के साथ उसकी ग़ैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है, इसलिये इसमें स्थिरता लाना ज़रूरी होता है। संसाधन एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में विकास की गति की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। संसाधनों के साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। दक्षिण भारत कुल प्रजनन क्षमता दर यानी प्रजनन अवस्था में एक महिला कितने बच्चों को जन्म दे सकती है, में यह दर क़रीब 2.1 है जिसे स्थिरता दर माना जाता है। लेकिन इसके विपरीत उत्तर भारत और पूर्वी भारत, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्य हैं, इनमें कुल प्रजनन क्षमता दर चार से ज़्यादा है। यह भारत के भीतर एक क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करता है। जब किसी भाग में विकास कम हो और जनसंख्या अधिक हो, तो ऐसे स्थान से लोग रोज़गार तथा आजीविका की तलाश में अन्य स्थानों पर प्रवास करते हैं। किंतु संसाधनों की सीमितता तथा जनसंख्या की अधिकता तनाव उत्पन्न करती है, विभिन्न क्षेत्रों में उपजा क्षेत्रवाद कहीं न कहीं संसाधनों के लिये संघर्ष से जुड़ा हुआ है।
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Explanation:
महंगाई को लेकर इस देश के विद्वान एकमत नहीं है । मूंडे मूंडे मति भिर्न्ना। इस कारण यहां अनेक थ्योरियां प्रचलित है। भारतीय दर्शन शास्त्र में पंच महाभूत बतलाएं गए हैं- हवा, पानी, आग, पृथ्वी तथा आकाश। कुछ विद्वानों के मतानुसार महंगाई भी एक तरह से भूत हैं अत: इसका स्वरूप हवा जैसा है। जिस प्रकार हवा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मौजूद है, ठीक उसी प्रकार महंगाई चप्पे-चप्पे में व्याप्त है। जिस प्रकार हवा को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, उसी प्रकार महंगाई का केवल अनुभव किया जा सकता है, जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार महंगाई, रंगहीन, गंधहीन नहीं होती। महंगाई को देखा जा सकता है। इसके प्रभाव से मिर्ची लाल हो जाती है और हल्दी पीली पड़ने लगती है। इसका प्रभाव विशेषकर कमर पर होता है। अत: इसकी इस मारक शक्ित को सूचकांक के पैमाने पर नापकर अध्ययन तथा विश्लेषण किया जा सकता है। महंगाई के बारे में आम धारणा है कि वह ढीठ होती है। महंगाई क्यों बढ़ती है, आज तक कोई समझ नहीं पाया। सरकार को महंगाई की सेहत और गति की खासी चिन्ता रहती है, पर वह सरकार की बिगडै़ल बहू जैसी रत्तीभर भी परवाह नहीं करती। सरकार उसके कद को रोकन के लिए घोषणाएं करती है। सरकार कहती है कि वह महंगाई पर लगाम लगाएगी। अब आप ही बताइए कि महंगाई कोई घोड़ी है, जिस पर लगाम कसी जाए। सरकार के इस रवैए से महंगाई चिढ़ जाती है। कई बार सरकार महंगाई से सीधे-सीधे अपील भी करती है पर महंगाई के कानों में जूं तक नही रेंगती, ढीठ जो ठहरी। विपक्षी दलां को बहुत भाती है महंगाई। महंगाई की भरी-पूरी सेहत देख कर उनकी बांछें खिल जाती हैं। महंगाई उन्हें बयान देने, सदन में बोलने और टेलीविजन की खबरों में आने का अवसर देती है। खासतौर पर इलेक्शन इयर में महंगाई का चढ़ता ग्राफ देख कर क