निबंध को सुरुचिपूर्ण बनाने की दिशा में भाषा के महत्व पर प्रकाश डालें
class. 9
sub hindi
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अतीत और वर्तमान के बीच का फासला कभी-कभी काफी कुछ कह जाता है। राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्बन्ध में भी अतीत और वर्तमान के संदर्भ काफी कुछ कह जाते हैं। इसमें कहीं राजनीति की धुँध है, कहीं चिन्ता की कुहेलिका है, कहीं विकास के चिह्न हैं, कहीं उत्साह की लहर है, कहीं राष्ट्रीय अस्मिता की गूँज है, कहीं कृत्रिमता की गंध है, कहीं प्रदर्शन का खोखलापन है तो कहीं हिन्दी की प्रगति के गीत भी है। कुल मिलाकर राष्ट्र भाषा हिन्दी अपनी विकास-यात्रा के विभिन्न सोपानों से गुजरती हुई भविष्य के द्वार पर दस्तक देती हुई आगे बढ़ रही है।
देश के स्वतन्त्र होने के बाद यहाँ की जनता में अपनी राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को देखने के लिए जो तीव्र आकांक्षा सुलग रही थी उसे मूर्त रूप मिला संविधान-सभा द्वारा, इसे राजभाषा के रूप में अंगीकार करने के बाद और यहीं से इसका वह वर्तमान स्वरूप अब अतीत की धरोहर बन गया है। तो आइए- हम एक विहंगम दृष्टि डालें राजभाषा हिन्दी के उस अतीत से वर्तमान तक की यात्रा पर ।
12 सितम्बर 1949 को संविधान-सभा में राजभाषा-सम्बन्धी उपबन्धों पर चर्चा करते हुए संविधान-सभा के अध्यक्ष की हैसियत से डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था – ‘‘पूरे संविधान में ऐसा कोई अनुच्छेद नहीं होगा जिसका हर दिन, हर घंटा या हर मिनट पर उपयोग होगा। मगर आज हम जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं उसका उपयोग हर समय, हर दिन, हर घंटा या हर मिनट पर होगा।’’ इसी युक्ति से राजभाषा की उपयोगिता की महत्ता समझी जा सकती है। सचमुच वह दिन गौरवपूर्ण था जिस दिन यानी 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया और अनुच्छेद 343 (1), के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी भारत-संघ की राजभाषा बनी।
उस दिन सचमुच हिन्दी भारत-माता के माथे की बिन्दी बनकर इठला उठी और सारे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए हमें एक सशक्त भाषा का माध्यम मिला। कभी-कभी बहुत से व्यक्ति यह प्रश्न उठाते हैं कि हिन्दी को राजभाषा के रूप में ही क्यों मान्यता दी गई, उसे राष्ट्र भाषा के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया गया? इस सम्बन्ध में अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क दिए जा सकते हैं और चर्चा का अनन्त सिलसिला भी चलाया जा सकता है।