Hindi, asked by Revansh21, 30 days ago

निबंध- क) वन प्रकृति की शोभा​

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Answered by raunaknayak2102
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Here your answer

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I have given some points Which you can write easily but you have to write the whole answer by own

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Answered by tejindersinghdeol41
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भूमिका – धरती हमारी माँ है और वन उसके वस्त्र हैं। धरती माँ की शोभा उसके हरे-भरे वस्त्रों के कारण ही है। धरती के ये वस्त्र उसकी शोभा ही नहीं, बल्कि ये वन उसके उत्पाद हैं और समृद्धि के भंडार हैं। इनके बिना यह धरती सूनी, नंगी और कंगाल हो जाएगी। प्रकृति ने वन में मौजूद पेड़- पौधों के रूप में धरती माँ का बहुत ही सुंदर ढंग श्रृंगार किया है। वृक्ष प्रकृति का सुंदर उपहार – प्रकृति ने हमें अनेक वरदान दिए हैं। नदियाँ दी हैं, समुद्र दिया है, पहाड़, बादल और बारिश दी है। साथ ही दिए हैं-हरे-भरे वृक्ष, आकाश की छाती को चूमते वृक्ष। ये वृक्ष वनस्पति और औषधि के भंडार तो हैं ही, सौंदर्य के भी अक्षय भंडार हैं।जब हम इनके सौंदर्य का अवलोकन करते हैं , तब बार बार देखने से भी हमारी ऑंखें थकती नहीं हैं। इन्हें देखते रहें तो भी मन नहीं भरता।

बच्चों के लिए ये झुनझुने हैं, युवकों-युवतियों के लिए झूले हैं, बड़े-बूढ़ों के लिए छत हैं। इनके सौंदर्य को निहारने के लिए लोग पहाड़ों की सैर पर जाते हैं। नैनीताल से कौसानी की यात्रा हो ; मसूरी से यमुनोत्री-गंगोत्री की यात्रा हो ; मणिपुर, मेघालय या शिलांग की पहाड़ियाँ हों, सबका हरित सौंदर्य मन को प्रसन्नता से भर देता है।

वृक्षारोपण का महत्त्व – दुर्भाग्य से वनों का अंधाधुंध सफाया किया गया है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वर्षा का चक्र बाधित हुआ है। पानी के ढलाव के कारण बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया है। इससे हम मनुष्यों का जीवन कठिन हो गया है। वर्षा कम होने के कारण कृषि कार्य प्रभावित हुआ है। जो कृषक वर्षा आधारित कृषि पर ही निर्भर करते हैं उनके सामने बहुत बड़ी चुनौती है कि वे इस प्राकृतिक समस्या का सामना कैसे करें। इस कारण अधिक से अधिक नए वृक्षों को रोपने की आवश्यकता सामने आ गई है। वृक्ष औषधि, फल, फूल तथा अन्य प्राकृतिक पदार्थों के दाता हैं। इन्हें अधिक मात्रा में लगाना प्रत्येक धरा-पुत्र का कर्तव्य है।

वृक्ष-पूजा – भारत में वृक्ष-पूजा की परंपरा लम्बे समय से चली आ रही है। इस परम्परा की असली वजह तो शायद किसी को नहीं मालुम लेकिन धर्मग्रंथों वृक्ष-पूजा की परम्परा का वर्णन मिलता है।अनुमानतः वृक्ष-पूजा की परंपरा इसलिए डाली गई ताकि धर्मप्रिय जनता इनके महत्त्व को समझे। इसी कारण कहीं पीपल की पूजा की जाती है तो कहीं बड़ की। घर-घर में तुलसी के पीधे की पूजा की जाती है। इससे पता चलता है कि इन वृक्षों का मानव-जीवन में बहुत महत्त्व है।

मानव-मूल्यों के प्रतीक – मानव का सबसे बड़ा जीवन-मूल्य है-आत्मदान, त्याग और समर्पण। वृक्ष इस जीवन-मूल्य को जीते हैं वे संसार के लिए अपनी एक-एक संपदा का दान कर देते हैं वृक्ष के फल-फूल, पत्ते, तना, जड़ें, छाल सब दूसरों के काम आ जाते हैं तभी तो समर्पण की मूर्ति दुलहन अपने पति को विश्वास दिलाती हुई कहती है-मैं तुलसी तेरे आँगन की।

अमूल्य औषधियों का भंडार – वृक्ष अमूल्य औषधियों के भंडार हैं। मूर्छित लक्ष्मण को जीवन देने वाली जडी-बूटी इन्हीं वृक्षों से प्राप्त हुई थी। सभी मसाले, सुगंधित फल-फूल इन्हीं वृक्षों की देन है। इनका संरक्षण करना हमारे जीवन के हित में है। होना तो यह चाहिए कि हम वृक्षों की महिमा के कारण इनका संरक्षण करें। इतना न सही, कम-से-कम हम अपने स्वार्थ में ही इनका संरक्षण करें, इन्हें लगाएँ और पालें-पोसें।

निष्कर्ष – निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते है कि वन-संरक्षण को सुखी मानव जीवन के लिये एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में देखना चहिये क्योंकि वन धरती पर हिने वाले जलवायु परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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