निबंध लेखन कीजिए अस्पताल के परिचारिका की आत्मकथा
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नर्स पर निबंध : कई बार जब हम बीमार हो जाए अथवा हमारे दोस्त रिश्तेदार को दिखाने के लिए अस्पताल (चिकित्सालय) अवश्य ही गये होंगे. जहाँ आपने एक विशिष्ट वेशभूषा में डॉक्टर और मरीज करने वाली महिला सेविका को जरुर देखा होगा जिन्हें नर्स अथवा परिचारिका कहा जाता हैं.
इनका सिर एक अलग ही तरह की टोपी से ढका रहता हैं. पैरों में सफेद जूते एवं मोज़े पहने हुए. कभी डॉक्टर के पास तो कभी मरीज को सात्वना देते हुए देखा होगा. वह मैं ही हु मुझे अधिकतर लोग बहिनजी कहकर ही पुका रते हैं. बीमार लोगों की आपबीती सुनने उन्हें ठीक होने का दिलासा दिलाने के साथ ही मैं उनकी केयर करती हूँ. आज मैं छुट्टी पर हूँ सोचा क्यों न मेरे मित्रों को आज अपनी आत्मकथा बता डालू.
मैं आपकी बहन या बेटी की तरह एक साधारण लड़की हूँ कुछ ही समय पूर्व से मैं नर्स के सेवाकार्य के रूप में अस्पताल में हूँ. मेरा पैदाइश यहाँ कि नहीं हैं. बल्कि मेरा जन्म मरुस्थलीय प्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ.
हमारे पिताजी एक छोटे कृषक है आज भी मेरा परिवार बारह लोगों का हैं जिनमें दादा दादी समेत हम आठ भाई बहिन हैं. भले ही आज हम परिवार नियोजन और हम दो हमारे दो की परिपाटी को तवज्जु दे रहे हैं. मगर कुछ दशक पूर्व तक इस तरह के बड़े परिवार एक आम बात थी, जिनमें मेरा परिवार भी शामिल हैं. किसान परिवार में कुछ समय पूर्व तक अधिक संख्या बल पर जोर दिया जाता था.
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आप चिकित्सालय अवश्य गए होंगे, अपने किसी रोगी मित्र, परिवारजन या संबंधी को देखने अथवा स्वयं को चिकित्सक को दिखाने। वहाँ पर आपने नर्स को अवश्य देखा होगा। श्वेत वस्त्रों में, सिर पर विशेष आकार की श्वेत टोपी और पैरों में भी श्वेत जूते-मोजे पहने, तत्परता से इधर-उधर दौड़ते-भागते, दवा देते, रोगी को ले जाते-लाते, मुस्करा कर रोगी के साथ बातें करते। तो वह मैं हूँ। मैं एक नर्स हूँ। मुझे देखते ही रोगी में जीवन की आशा जागृत होती है। बहुत दिनों से सोच रही थी कि मैं आपको अपनी आत्मकथा सुनाऊँ तो चलिए आज मेरे पास समय है मैं अपनी कहानी सुनाती हूँ।
आप मुझे इस चिकित्सालय में देख रहे हैं, मैं विगत कई वर्षों से इस चिकित्सालय में रोगियों की सेवा कर रही हूँ। मैं यहाँ की रहने वाली नहीं अपितु केरल के एक सुदूर छोटे-से गाँव में मेरा जन्म हुआ था। परिवार में माँ-पिता जी, बूढ़ी दादी के अतिरिक्त हम दस भाई-बहिन थे। आप हँस रहे होंगे कि जहाँ शहरों में परिवार में दो या एक बच्चे को अधिक महत्त्व दिया जाता है वहीं दस बच्चे? यहाँ लगभग सभी परिवारों की दशा एक जैसी है।
कृषक परिवार होने के कारण परिवार-जन की संख्या पर बल दिया जाता है। खैर भाई-बहिनों में सबसे बड़ी होने के कारण मैं घर भर की लाडली थी। इसी लाड के कारण माँ-दादी ने मुझे खूब पढ़ाने का निश्चय किया। आयु होने पर मुझे गाँव की पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया। पढ़ाई के प्रति मेरी लगन एवं कुशाग्रता देख पिता जी ने मुझे बैंक-अधिकारी बनाने का निश्चय किया। हाई स्कूल पास करने के बाद मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाही, किंतु परिवार के बढ़ते बोझ के चलते मुझे अन्य विकल्प सोचना पड़ा।
मेरी अन्य सहेलियों ने नर्सिंग के फार्म भर दिए थे, सो मैंने भी वही किया। माँ और दादी जी मुझ पर क्रोधित हुई, पर जब मैंने उन्हें पिता जी का बोझ हल्का करने का अपना संकल्प सुनाया तो वे प्रसन्न हो गईं। निश्चित समय पर हमें प्रवेश-परीक्षा के लिए बुलाया गया। वहाँ भी मैंने बाजी मारी और उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की सूची में सर्वोच्च स्थान पाकर मैं फूली न समाई। शीघ्र ही दिल्ली के एक जाने-माने चिकित्सालय में प्रशिक्षण के लिए मैंने तैयारी कर ली। डबडबाई आँखों से सबने सुखद भविष्य की कामना करते हुए मुझे विदाई दी।
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