Hindi, asked by Jksishsmksjsns, 1 day ago

*निबंध लेखन का शीर्षक:* राष्ट्रीय आंदोलन में क्रान्तिकारियों की भूमिका

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Answered by ashwinibadgujar7382
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Answer:

मानव इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक अनोखी मिसाल है। इसमें सभी वर्गों के लोगों ने सभी प्रकार की जाति, पंथ, या धर्म से ऊपर उठकर एवं एकजुट होकर एक उद्देश्य के लिए काम किया। यह एक पुनर्जागरण था। यह लोगों की विभिन्न पीढ़ियों का संघर्ष और बलिदान था जिसके परिणामस्वरुप स्वतंत्रता प्राप्त हुई और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 1969 में उन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पूर्व-अंडमान राजनीतिक कैदी पेंशन योजना शुरु की गई जिन्होंने सेल्यूलर जेल, अंडमान में कैद भोगी थी। बाद में, भारतीय स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगाँठ के अवसर पर वर्ष 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों की अन्य श्रेणियों को शामिल करके एक नियमित स्वतंत्रता सेनानी योजना शुरु की गई। वर्ष 1980 में इस योजना को उदारीकृत किया गया।

Answered by manaschauhan26
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Answer:

भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितान्त अभाव हो गया है।

सेलुलर जेल की काल कोठरियाँ भी भारतीय क्रान्तिकारियों के मनोबल को नहीं तोड़ पायीं।

क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है।

जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार भारत की मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए।

भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरान्त यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई।

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