निब्धा लेखन
कुते की आत्म कथा
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मैं पुलिस का वफादार खोजी कुत्ता रहा हूँ। आज मेरी सेवानिवृत्ति हो रही है । मुझे चिन्ता सता रही है कि सेवानिवृत्ति के बाद मैं जाऊँगा कहाँ? रहूँगा कहाँ? क्या खाऊँगा? समझ में नहीं आ रहा है।
अब मैं पुलिस विभाग के काम का नहीं रहा हूँ। जिस मुहल्ले में जाऊँगा, उस मुहल्ले के कुत्ते मुझे रहने नहीं देंगे। मारेंगे बुरी तरह। बिना बात अपने बिरादर भाई से लड़ना उनका जन्मजात स्वभाव है। वे किसी की मजबूरी को नहीं समझते हैं। बस, मुहल्ले में दादागिरी करनी है उन्हें।
"नहीं बन्धु, ऐसी बात नहीं है। अपनी कूकर विरादरी में भी जाग्रति आई है। सहयोग की भावना बढ़ी है। जहाँ भी जाओगे स्वागत होगा तुम्हारा। आज तो हर कोई अपनी विरादरी ढूँढ रहा है। देश के नेताओं तक में ये बुद्धि जाग्रति हुई है। पहले अपनी जाति, बाद में अपना देश ।" दूसरे कुत्ते ने मुझे सांत्वना दी।
मैं बोला, 'मित्र, भले ही वे मुझे अपने मुहल्ले में रखने को तैयार हो जायें, पर रैगिंग जरूर करेंगे। रैगिंग से मुझे बहुत डर लगता है। कोई पूँछ पकड़ेगा तो कोई टाँग खींचेगा; कोई दाँतों से कचोटेगा तो कोई कान उमेंठेगा। बाप रे बाप! बड़ा बेहाल कर देते हैं रैगिंग में। इंसान ने भी रैगिंग का खेल हमारी विरादरी से ही सीखा है। लेकिन बहुत बेदर्द और अमानुस अर्थात पशुवत!" मैं सिहरने लगा।.... तभी हवलदार आता दिखाई दिया। हम चुप हो गए। हवलदार चला गया। बातों का क्रम फिर चल पड़ा।
मैंने कहा, "मेरे दो भाई और हैं पुलिस विभाग में। हम तीनों ही आज सेवानिवृत होंगे। कोई आदमी आश्चर्य से कह सकता है, एक ही दिन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? हमारी विरादरी में पाँच-पाँच, छ:-छ: जुड़वां बच्चे पैदा होने का वरदान मिला हुआ है। फिर परिवार नियोजन का भी भय नहीं है। पालन-पोषण की जिम्मेदारी माँ-बाप निभाते नहीं हैं। इसलिए जो भाग्यशाली होते हैं, वे मनुष्य द्वारा पाल लिए जाते हैं और शेष करते हैं आबारागर्दी और मुहल्लों में दादागिरी। सभी उनसे डरते हैं। वे अपने क्षेत्र के नेता बन जाते हैं और फिर लोकतंत्र के रक्षक कहलाते हैं देश के नेताओं की तरह।
मेरे साथी ने कहा, “मनुष्य को बुरा लगेगा। उनके बारे में ऐसा मत कहो मित्र। मैंने कहा, “मनुष्य हमारे जैसे गुण गृहण कर रहा है तब बुरा क्यों मानेगा? किसी को थोड़ा-सा लालच दिया नहीं कि उसी के गीत गाता है अर्थात कुत्ते की तरह दुम हिलाता फिरता है। इतना ही नहीं कुछ मनुष्य भी कुत्ते की मौत मरने लगे हैं। आज बहुत से मनुष्य ऐसे मिल जायेंगे, जो हमारे जैसे वफादार बनकर, हमारी जैसी मौत मारे जाते हैं, लेकिन अन्त तक हमारी तरह दुम हिलाना नहीं छोड़ते।"
मुझे लगा, मैं कुछ ज्यादा ही बोल रहा हूँ। मैं चुप हो गया। कार्यक्रम का समय हो गया है। चलता हूँ उधर ही, जिधर मेरी विदाई का समारोह होना है।
पूरी परंपरा के साथ मेरा विदाई समारोह हुआ । सभी ने मेरे गले में मालाएंँ पहनायीं।