Hindi, asked by shashisonker7776, 4 months ago

निबंध लेखन मीडिया का वर्चस्व 80 to 100
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Answered by kedar4406
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यह मीडिया वर्चस्व का युग है। सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वर्चस्व का यह मूलाधार है। मीडिया हमारे जीवन की धड़कन है। मीडिया के बिना कोई भी विमर्श, अनुष्ठान, कार्यक्रम, संदेश, सृजन, संघर्ष, अन्तर्विरोध फीका लगता है। हम यह भी कह सकते हैं कि मीडिया इस समाज की नाभि है। जहां अमृत छिपा है।

आज आपको किसी विचार,व्यक्ति, राजनीति, संस्कृति, मूल्य,संस्कार आदि को परास्त करना है या बदलना है तो मीडिया के बिना यह कार्य संभव नहीं है। मीडिया सिर्फ संचार नहीं है। वह सर्जक भी है। वह सिर्फ उपकरण या माध्यम नहीं है। बल्कि परिवर्तन का अस्त्र भी है।

मीडिया के प्रति पूजाभाव,अनुकरणभाव,अनालोचनात्मक भाव अथवा इसके ऊपर नियंत्रण और अधिकारभाव इसकी भूमिका को संकुचित कर देता है। मीडिया को हमें मीडिया के रूप में देखना होगा। पेशेवर नियमों और पेशेवराना रवैयये के साथ रिश्ता बनाना होगा।मीडिया को नियंत्रण, गुलामी, अनुकरण पसंद नहीं है। मीडिया नियमों से बंधा नहीं है।

जो लोग इसे नियमों में बांधना चाहते हैं, राज्य और निजी स्वामित्व के हितों के तहत बंदी बनाकर रखना चाहते हैं। उन्हें अंतत: निराशा ही हाथ लगेगी।मजेदार बात यह है कि प्रत्येक जनमाध्यम की अपनी निजी विशेषताएं होती हैं।किंतु कुछ कॉमन तत्व भी हैं।

मीडिया को आजादी, पेशेवर रवैयया,जनतंत्र,अभिव्यक्ति की आजादी, सृजन की आजादी पसंद है। मीडिया स्वभावत: साधारणजन या दरिद्र नारायण की सेवा में मजा लेता है। वही इसका लक्ष्य है। लेकिन मुश्किल यह है कि मीडिया के पास राज्य से लेकर बहुराष्ट्रीय निगमों तक जो भी जाता है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए जाता है। हमारी मुश्किल यहीं से शुरू होती है और हम मीडिया को गरियाने लगते हैं। उसके प्रति, उसकी सामाजिक भूमिका के प्रति निहित स्वार्थी दृष्टिकोण से रचे जा रहे उसके स्वरूप को ही असली स्वरूप मान लेते हैं।

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