निबंध में पर्यावरण का रक्षक हूँ
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प्रकृति से मनुष्य का अटूट संबंध रहा है। मानवीय विकास में प्रकृति की विशेष भूमिका रही है। मुझे इस बात की गंभीर चिंता रहती है कि यदि इसी प्रकार हम लोग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते रहे तो इस पृथ्वी की क्या होगा? इस पृथ्वी को जिसे ‘माँ’ के रूप में देखते हैं, क्या अपने स्वार्थ के कारण ऐसे ही नष्ट हो जाएगी। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। अपने वजूद को बचाने के लिए इस पृथ्वी को हमें बचाना ही होगा। इस धरती माँ को बचाने के लिए अभी और कुछ करने का संकल्प लेना होगा। इन्हीं विचारों को लेकर हमने पर्यावरण संरक्षण समिति बनाई। अब हममें से प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण प्रेमी है। हम लोग अपने घर के आस-पास वातावरण को साफ सुथरा रखते हैं। कोई भी खुशी का अवसर हो, एक पौधा अवश्य लगाते हैं। हम सब उसकी देखभाल करते हैं। इस तरह हम लोग विश्व स्तर पर इस समस्या का समाधान कुछ न कुछ अवश्य निकालेंगे।
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