निबंध - मेरी यात्रा वर्णन
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किसी पर्वतीय स्थल मेरी यात्रा वर्णन
हाल ही में मैं अपने चार दोस्तों के साथ रोहतांग दर्रा की पैदल यात्रा पर गए | अगस्त का महीना था और रास्ते में ही बारिश शुरू हो गई | हम सब बुरी तरह भीग गए | किसी तरह से एक छोटी सी गुफा तक पहुंचे | कठिनाई से किसी तरह रात गुजारी | दो दोस्तों ने वहीं हिम्मत हार दी व वापसी का सामान बांध लिया| बचे हुए हम तीनों में भी एक का मन असमंजस में था | सब में एक बहस छिड़ गई कि आगे जाएँ या ना जाएँ |
मैंने सबको बहुत समझाया पर कोई निर्णय नहीं निकला अत: मैंने एक रूपये का सिक्का निकला और टॉस के लिए पूछा | हेड तो जाना है टेल तो नहीं जाना | सब मान गए और सिक्का हवा में उछाला | हेड आया और सब चलने को तैयार हो गए | लम्बी सांस ली और बिना पीछे देखे चल पड़े सब ने एक दूसरे का साहस बंधाया | रोहतांग की चोटी बिल्कुल पास से देखते ही सांस में सांस आ गई | भर्फ़ से भरा सारा रास्ता और ऊँची - ऊँची भर्फ़ ढकी पहाडीयों को देख जनत देख लिया हो | सब ने मिलकर बहुत मजे किये | रात खुले आसमान में गुजारी और अगले दिन घर वापिस आ गए |