Hindi, asked by manasalmora, 1 year ago

निबंध plastic ें उपसंहार


PRASADRAOGEDDAM: Say properly

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Answered by mantasakasmani
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प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic pollution) कहलाता है जिससे वन्य जन्तुओं, या मानवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पडता है।प्लास्टिक प्रदूषण पर प्रतिकूल वन्य जीवन, वन्यजीव निवास स्थान, या मनुष्य को प्रभावित करता है कि वातावरण में प्लास्टिक उत्पादों के संचय करना शामिल है। कई प्रकार के और प्लास्टिक प्रदूषण के रूपों में मौजूद हैं।

आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव-शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। गृहोपयोगी वस्तुओं से लेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, विज्ञान सेना, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है।

प्लास्टिक एक ग्रीक शब्द प्लास्टीकोस से बना है, जिसका सीधा तात्पर्य है आसानो से नमनीय पदार्थ जो किसी आकार में ढाला जा सके। 1970 के दशक में इसका उपयोग औद्योगिक तथा घरेलू क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से बढ़ा। सस्ता, हल्का, ताप-विद्युत, कंपन-शोर प्रतिरोधी तथा कम जगह घेरने वाला पदार्थ होने के कारण औद्योगिक कार्यों में धातुओं की जगह इसने ले ली। साथ ही, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, कृषि उपकरण तथा अन्यान्य आवश्यक कार्यों में भी प्लास्टिक को प्रतिनिधित्व मिला। विश्व में औसतन प्लास्टिक की खपत 15 किलो/ प्रतिव्यक्ति की तुलना में भारत में यह खपत लगभग प्रति व्यक्ति लगभग 1 किलो है। इस तरह विश्व की तुलना में यह खपत भारत में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत है। इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट जिसमें EPOXY,प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, चप्पल, टी.वी., कैबिनेट, टेपरिकॉर्डर के गियरबॉक्स, प्रकाश करने वाले स्रोत, बटन इत्यादि शामिल हैं। भारत में प्रतिवर्ष करीब 700 टन निकलता है, जबकि ऐसे प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा विश्व में 7000 टन है।

अपनी विविध विशेषताओं के कारण प्लास्टिक आधुनिक युग का अत्यंत महत्वपूर्ण पदार्थ बन गया है। टिकाऊपन, मनभावन रंगों में उपलब्धता और विविध आकार-प्रकारों में मिलने के कारण प्लास्टिक का प्रयोग आज जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। बाजार में खरीदारी के लिए रंग-बिरंगें कैरी बैग से लेकर रसोईघर के बर्तन, कृषि के उपकरण, परिवहन वाहन, जल-वितरण, भवन, रक्षा उपकरण एवं इलेक्ट्रॉनिक्स सहित अनेक क्षेत्रों में आज प्लास्टिक का बोलबाला है। यही नहीं वैज्ञानिकों ने मनुष्य का जो कृत्रिम हृदय बनाया है, वह भी प्लास्टिक से ही बनाया गया है।

प्लास्टिक जनित प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र सरकार सहित विभिन्न राज्य सरकारें भी प्रयासरत् हैं और इसे रोकने के लिए कई राज्यों में अधिनियम बनाए जा चुके हैं तो कई राज्यों में इन्हें बनाने की प्रक्रिया चल रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में भी इस संदर्भ में दो अधिनियम बनाए जा चुके हैं। दिल्ली प्लास्टिक थैलियां (विनिर्माण, बिक्री एवं प्रयोग) तथा गैर-जैव अवक्रमित कचरा-करकट (नियंत्र) अधिनियम, 2001। ये अधिनियम 2 अक्टूबर, 2001 से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में लागू हो चुका है और इसके अनुसार 20 माइक्रॉन से कम मोटाई की प्लास्टिक या पॉलीथिन की थैलियों का उत्पादन दिल्ली में नहीं किया जा सकता। उपरोक्त अधिनियमों का उल्लंघन करने पर 3 महीने से एक वर्ष की कैद अथवा 25,000 रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनों (कैद व जुर्माना) एक साथ दंड स्वरूप दिए जा सकते हैं। ये अधिनियम मुख्यतः पॉलीथिन व प्लास्टिक की थैलियों का उत्पादन करने वाले निर्माताओं पर लागू होते हैं। हमारे देश में कानूनों की तो कमी नहीं है, कमी है तो बस उन्हें सख्ती से लागू करने की।

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Answered by Anonymous
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जैसा कि हम आधुनिक और औद्योगिक दिन-प्रतिदिन चाहते जा रहे हैं, हम लगातार विभिन्न उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं जो प्लास्टिक से बने हैं।

उत्पादकता और गुणवत्ता दक्षता के कारण प्लास्टिक निस्संदेह विज्ञान के सबसे अद्भुत आविष्कारों में से एक है।

लेकिन यह प्रकृति के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि यह एक गैर-बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है। यह हमारे पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण का कारण बनता है।

अंत में, हम कह सकते हैं कि प्लास्टिक हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन हमें इसे सुरक्षित तरीके से उपयोग करना होगा।

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