निबंध - रेल के टिकट आरक्षित करने के लिए आपको एक लंबी लाईन में खड़ा होना पड़ा | लाईन में खड़े रहने की परेशानी तथा लाईन की उपयोगिता का वर्णन अपने अनुभवों के आधार पर करें |
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रेल टिकट आरक्षित करने के लिए लाईन में हुई परेशानी और अनुभव का वर्णन...
पिछले दिनों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर से अपने गाँव जाने के लिए रेल टिकट आरक्षित कराने हेतु आरक्षण केंद्र में गया। आरक्षण केंद्र में अंदर घुसते ही वहां पर लगी लोगों की लाइनों की संख्या और लंबाई देखकर होश उड़ गए। कुल 10 खिड़कियां थीं और हर खिड़की पर इतनी लंबी लाइन थी कि आरक्षण केंद्र के हॉल के बाहर तक लोग खड़े हुए थे। एक लाइन जो छोटी नजर आ रही थी, तो उसमें लग गया। काफी समय इंतजार करने के बाद भी जब लाइन आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रही थी, यह जानने के लिए आगे नजर दौड़ाई तो देखा कि लाइन के पहले व्यक्ति की विंडो क्लर्क से किसी बात पर बहस हो रही थी और इस बहस-बाजी के कारण बहुत समय बर्बाद हो रहा था। किसी तरह मामला सुलझा और लाइन आगे बढ़ी।
करीब 2 घंटे तक लाइन में खड़े होने के बाद मेरा नंबर आया और जब टिकट निकाला तो टिकट वेटिंग लिस्ट में आया, जबकि आते समय मैंने देखा तक कि बर्थ उपलब्ध थी यानी मतलब जो ढाई घंटे में लाइन में खड़ा था, उसमें मेरा नंबर आते-आते बर्थ फुल हो गई थी। वह तो शुक्र है कि वेटिंग लिस्ट लंबी नहीं थी केवल पाँच नंबर था और उम्मीद थी कि शायद आगे यह टिकट कंफर्म हो जाए इस उम्मीद में वेटिंग लिस्ट का टिकट निकाल लिया।
मेरे विचार में टिकट विंडो क्लर्कों की सुस्ती के कारण काफी समय लग जाता है। रेल प्रशानस को इस बात पर ध्यान देना चाहिए और टिकट विंडो क्लर्को को चुस्ती-फुर्ती से काम करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए और सख्त हिदायत देनी चाहिये ताकि यात्रियों का कीमती नष्ट यूँ ही नष्ट न हो।
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