Hindi, asked by vishwa4309, 11 months ago

निबंध सत्य का महत्व​

Answers

Answered by rajv41724
8

Answer:

सत्य मानव की सबसे बड़ी शक्ति है। सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं हो सकता। हमारे देश में तो राजा हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी हुए हैं, जिनकी मिसाल आज तक दी जाती है। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा की थी और आजीवन उसका पालन किया। उनका कहना था, ‘चन्द्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार।’ पै दृढ़ हरिश्चन्द्र को टरै न सत्य विचार।

Table of Contents

Meaning of Truth सत्य का अर्थ

Qualities of Truth सत्य की पहचान

Conduct of truth सत्य का आचरण

Story of Yudhisthira in Hindi युधिष्ठिर की कहानी

How to follow truth जीवन में सत्य का पालन कैसे करें

Quotes on Truth in Hindi सत्य पर सुविचार

Meaning of Truth सत्य का अर्थ

सत्य का अर्थ है ‘सते हितम्’ अर्थात् जिसमें हित या कल्याण निहित हो। सत्य भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों काल में एक सा रहता है तथा इससे यथार्थ का ज्ञान होता है। साधारण बातचीत में जो सच है, यथार्थ है उसे जानना, समझना, मानना, कहना एवं उसके अनुसार ही व्यवहार करना सत्य है। मानव बोध में सत्य के प्रति श्रद्धा एवं असत्य के प्रति घृणा स्वाभाविक रूप से पाई जाती है।

Qualities of Truth सत्य की पहचान

वाणी और मन का यथार्थ होना सत्य की पहचान है अर्थात् जो मन में है, वही हम वाणी से बोलें। सत्य सरल एवं सीधे स्वभाव से कहा जाता है, जबकि झूठ बोलने वाले के मन में कपट भाव छिपा होता है। हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में सत्य की अनेकानेक विशेषताएं बताई गई हैं।

महाराज मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं, जिनमें सत्य भी प्रमुख स्थान रखता है। ‘धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।’ अर्थात् धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( अंतर्मन और शरीर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों से धर्म सम्मन आचरण), धी ( सत् बुद्धि), विद्या, सत्य एवं अक्रोध यानी हमेशा शांत रहना।

सत्यमेव जयते नानृतम् अर्थात विजय सदैव केवल सत्य की ही होती है। सत्य ही धर्म है तथा जहां धर्म है वहीं विजय है।

महाभारत शांति पर्व में कहा गया है – ‘सत्यस्य वचनं श्रेयः’ यानि सत्य वाणी ही श्रेष्ठ है तथा ‘सत्यादपि हितं वदेत्’ अर्थात सत्यवाणी हित में ही बोली जानी चाहिए।

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ की रचना का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए कहा है कि जो सत्य है उसको सत्य और जो मिथ्या है उसको मिथ्या मानना ही सत्य अर्थ के प्रकाश को समझना है।

सत्य की महिमा बताते हुए कहा गया है कि –

सांच बराबर तप नहीं, झूंठ बराबर पाप।

जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप।।

Conduct of truth सत्य का आचरण

सत्य का महत्व तब ही है जबकि सत्य को जीवन में मन, वचन, कर्म से स्वीकार किया जाये तथा प्रयोग किया जाये। सत्य की महिमा का बखान करना, सत्य के विषय में उपदेश देना जितना सरल है, जीवन में सत्य का आचरण करना उतना ही कठिन है। सत्य का आचरण करने वाला व्यक्ति ही सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा एवं सम्मान प्राप्त करता है। सत्य के आचरण के आधार पर ही हम एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं। परस्पर विश्वास की नींव पर ही सम्पूर्ण समाज की रचना टिकी हुई है।

Similar questions