निबंध
वही मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे
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आज के युग में मानव का सबसे बड़ा गुण है-परोपकार। इसका शब्दिक अर्थ है दूसरों के लिए अपने स्वार्थ का त्याग करना । अतः राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा है कि वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे इस काव्योक्ति में मानवता का लक्ष्य दर्शाया गया है। ... सच्चा मनुष्य वही है जो जन-कल्याण के लिए अपने प्राण तक कुर्बान कर सकता है।
Answer:
इतिहास में वे ही अमर हैं जिन्होंने महान सत्य के लिए, मानवता के हित के लिए यातनाएँ सही और अंत में मृत्यु का आलिंगन किया। मंसूर ने मानवता की भलाई के लिए विष का प्याला पीया, सौक्रेटीज ने जहर पिया, मीरा ने राणा द्वारा विष का प्याला अमृत की तरह पी लिया, ईसा मसीह सलीब पर चढ़ गये, गांधी ने साम्प्रदायिक सद्भाव पैदा करने के लिए नौखावाली की गलियों और बाजारों की धूल सटकी और नाथूराम गोडसे की गोली के शिकार हुए; भगतसिंह ने सरफरोशी की तमन्ना का नगमा गाते हुए फाँसी का फंदा स्वयं अपने गले में लटका लिया, सुभाष चन्द्र बोस ने देश की स्वतंत्रता के लिए जान की बाजी लगाकर जर्मनी, जापान की यात्रा की, आजाद हिन्द फौज बनायी, अंग्रेजों से लड़े और प्राण विसर्जित कर दिये। ये सब पूज्य हैं, वन्दनीय हैं, केवल भारत के लिए ही नहीं सम्पूर्ण मानवजाति के लिए, वे अमर हो गये और विश्व का इतिहास उन्हें सदा याद रखेगा। मनुष्य के लिए मर-मिटने की साध में अपूर्व आत्मिक सुख है। एक फकीर ने एक जालिम बादशाह की हिंसा-वृत्ति की शान्ति के लिए अपने शरीर की चमड़ी अपने ही हाथों से उधेड़ कर बादशाह को सौंप दी। वह सत्य की रक्षा के लिए शहीद हो गया, तभी तो दिल्ली के लाल किले और जामा मस्जिद के सामने बने उसके मजार पर आज भी हजारों मनुष्य श्रद्धा के फूल प्रतिदिन अर्पित करते हैं।
इतिहास क्या है? मनुष्यों के कारनामों का लेखा-जोखा ही तो इतिहास है। किसी के कारनामे पढकर हम वितृष्णा से नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं, जबकि किसी अन्य के कारनामे पढकर हमारा सीना फूल उठता है और सिर अपार श्रद्धा-भक्ति से झुक जाता है। क्यों, इतिहास इन मरने वालों की कहानी और लेखा-जोखा ही तो है। नहीं, केवल इतना ही इतिहास नहीं है। वह एक ओर तो उन लोगों का ब्यौरा देता है, जो केवल अपने लीए जीए और अपने लिए ही मरे भी। उनका ब्यौरा पढकर ही वितृष्णा से हमारी भवें तन जाती हैं। दूसरी ओर वह उन् लोगों का ब्यौरा हमें सुनाता है जो अपने लिए नहीं बल्कि मनुष्यों और मनुष्यता की रक्षा के लिए जिये और मरे। तभी तो हमारा मस्तक उनके सामने अपने-आप ही झुक जाता है। ऐसे लोगों को हम देश-काल की सीमाओं से ऊपर उठकर आदर्श पुरुष कहकर श्रद्धा-भक्ति से नमन करते हैं। यह नहीं देखते कि वह भारतीय हैं या अभारतीय, हिन्दू है या मुसलमान।नहीं, उसे तो हम केवल मनुष्य मानकर ही पूजते हैं। इसलिए पूजते हैं कि वे जिये तो मनुष्य के लिए, मरे तो मनुष्य के लिए और इसलिए वे सभी प्रकार से पूर्ण मनुष्य थे।
मनुष्य और मनुष्यता के लिए मर-मिटने की साध और दम-खम वाले व्यक्ति ही जातियों, देशों और राष्ट्रों का निर्माण करते हैं, उनका इतिहास और संस्कृतियाँ बनाते हैं। उनके लिए समुन्नत एवं समतल जीवन-पथ का निर्माण किया करते हैं। उनके लिए सबका दर्द अपना और अपना दर्द सबका बन जाया करता है। उनकी दृष्टि में सबको प्रसन्नता ही अपनी प्रसन्नता और सबकी जीत ही अपनी जीत बन जाया करती है। उनके लक्ष्य एवं उद्देश्य तुच्छ स्वार्थों से परिचालित कभी नहीं हुआ करते, बल्कि महत् मानवीय हितों की भावना से अनुप्रमाणित रहा करते हैं। यह इसलिए कि वे मनुष्य होते हैं – विशुद्ध मनुष्य।
जिस किसी ने भी मानवीय मूल्यों की रक्षा की, उसी को मानव एवं इतिहास ने सिर-आँखों पर बिठा कर अमरत्व प्रदान कर दिया। मानव-हिताय मरण व्यर्थ न जा कर सार्थक हुआ करता है। उससे मरने वाले के साथ-साथ मानवता का मस्तक भी गर्व और गौरव से उन्नत हुआ करता है। इसलिए व्यक्ति को स्वार्थ-त्याग के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
‘मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे‘ हमारे विचार में इस सूक्ति की यही सच्ची व्याख्या है। सुक्तिकर ने हर प्रकार से मानवीयता की उदात-उदार भावना को जीवन्त बनाए रखने की प्रेरणा देने के लिए ही इस कथन का सृजन किया है।