Hindi, asked by vihansingh31, 10 months ago

निबन्ध लिखिए

3. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी : बचपन • शिक्षा • वकालत • दक्षिण अफ्रीका जाना
• स्वाधीनता संघर्ष ० निधन

4. रक्षाबंधन : ० रक्षाबंधन का आगमन • रक्षाबंधन की पवित्रता • ‘भाई बहन का प्यार ●ऐतिहासिक घटना ●उपसंहार

5. विद्यार्थी जीवन : • मानव जीवन में विद्यार्थी जीवन का महत्व • विद्यार्थी के गुण • विद्यार्थी का कर्तव्य।​


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Answers

Answered by surajkumar7488
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Explanation:

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोआ। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। में भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया गया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्ण जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिंबम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम - मोहनदास करमचंद गाँधी

अन्य नाम - बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता

जन्म-तिथि व स्थान - 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात)

माता-पिता का नाम - पुतलीबाई, करमचंद गाँधी

पत्नी - कस्तूरबा गाँधी

शिक्षा - 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण। की,

विद्यालय - बिलासपुर विश्वविद्यालय, सामलदास कॉलेज

इंग्लैण्ड यात्रा - 1888-91, बैजस्टर की पढाई, लंदन विश्वविद्यालय

बच्चों के नाम (संतान) - हरलाल, मनिलाल, रामदास, देवदास

प्रसिद्धि का कारण - भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

राजनैतिक पार्टी - भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस

स्मारक - राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली)

मृत्यु - 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली

मृत्यु का कारण - हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपने माता पुतलीबाई के अंतरिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु पीड़ित के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान उनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन समाज के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उनकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहां तीन साल (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आए।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बगत जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाया और वापस राजकोट आ गया। यहाँ हेगेन्स की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया गया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उनमें भारतियों

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