Hindi, asked by kritzz9763, 1 year ago

निबन्धप्रेम विस्तार, स्वार्थ संकुचन है।स्वामी विवेकानंद​

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Answered by bhatiamona
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Answer:

प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन।

प्रेम और स्वार्थ दोनों अलग है | दोनों में बहुत अंतर है |

प्रेम लोगों को आपस में जोड़ कर रखता है और प्रेम के कारण हम खुश रहते है | प्रेम एक भावना है | सच्चा प्रेम वही है, जिस में  कोई स्वार्थ नहीं होता |प्रेम से प्रेम करो , सब के साथ प्रेम से रहो | क्योंकि प्रेम  ही जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो |  

स्वार्थ संकुचन , जो लोग मतलबी और स्वार्थी होते है , वह लोग हमेशा दूसरों के साथ दिखावे का प्रेम करते है और  मतलब के लिए प्रेम का नाटक करते है | ऐसे लोगों के पीछे हमेशा बदले और स्वार्थ की भावना होती है | स्वार्थ से लोग मरते है , और अपना जीवन दूसरों से जल-जल कर निकालते है | स्वार्थ मानव को गलत रास्ते और सबसे दूर ले जाता है|  हमें स्वार्थ छोड़कर प्रेम का रास्ता अपनाना चाहिए | प्रेम के रास्ते में ही सुख है |  

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