नीचे लेबर चौक पर आने वाले मजदूरों की जिंदगी का विवरण दिया गया है। इसे पढिए और आपस में चर्चा कीजिए कि लेबर चौक पर आने वाले मजदूरों के जीवन की क्या स्थिति है?
लेबर चौक पर जो मज़दूर रहते हैं उनमें से ज्यादातर अपने रहने की स्थायी व्यवस्था नहीं कर पाते और इसलिए वे चौक के पास फुटपाथ पर सोते हैं या फिर पास के रात्रि विश्राम गृह (रैन बसेरा) में रहते हैं। इसे नगरनिगम चलाता है और इसमें छ: रुपया एक बिस्तर का प्रतिदिन किराया देना पड़ता है। सामान की सुरक्षा का कोई इंतजाम न रहने के कारण वे वहाँ के चाय या पान-बीड़ी वालों की दुकानों को बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। उनके पास वे पैसा जमा करते हैं और उनसे उधार भी लेते हैं। वे अपने औजारों को रात में उनके पास हिफाजत के लिए छोड़ देते हैं। दुकानदार मजदूरों के सामान की सुरक्षा के साथ जरूरत पड़ने पर उन्हें कर्ज भी देते हैं।
स्रोतः हिन्दू ऑन लाइन, अमन सेठी
Answers
लेबर चौक पर आने वाले मजदूरों के जीवन की स्थिति निम्न प्रकार से है -
- उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है । उन्हें खुले में ही सोना पड़ता है। यदि वे रात्रि विश्राम गृह में ठहरे तो उन्हें ₹6 प्रतिदिन किराया देना पड़ता है । ग़रीब मज़दूर के लिए यह किराया बहुत अधिक है।
- उनके सामान की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। अतः उन्हें अपने औजा़र चाय तथा पान बीड़ी वालों की दुकानों पर रखने पड़ते हैं। इसके लिए भी उन्हें किराया देना पड़ता है।
- ये दुकानें उनके लिए बैंक का काम भी करती है। वे इन दुकानदारों के पास अपना पैसा जमा भी करवाते हैं और उनसे उधार भी लेते हैं। अतः केवल यही दुकानदार ही उनका एकमात्र सहारा है।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Explanation:
उत्तर: मजदूरों के रहने की स्थिति बहुत ही खराब होती है। उसके पास रहने का कोई स्थाई निवास नही होता है। वे सड़क किनारे फुटपाथ पर या रात्रि विश्राम गृह(रैन बसेरा) में सोते हैं। रात्रि विश्राम गृह में प्राय: ज्यादा भीड़ भाड़ होती है। ये रैन बसेरा अवैध ड्रग व्यापार और अपराध का अड्डा होता है। इसकी हालत बहुत ही खराब होती है। उसके सामान और कमाई की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं रहता है। लेकिन पास के दुकानदार उसकी सहायता करते हैं। वह उसके सामान की हिफाज़त और जरूरत पड़ने पर कर्ज दोनों रूप में सहायता करते हैं।