३. नीचे लिखे अवतरण का सार एक तिहाई में लिखते हुए, उसका समुचित<br />शीर्षक दीजिए -<br />संसार में ऐसा कोई नहीं, जिसमें कोई दोष न हो अथवा जिससे कभी<br />गलती न होती हो । अतएवं किसी की गलती देखकर जलो मत और न उसका<br />बुरा चाहो । अपनी गलतियों को देखो और उन्हें सुधारने की सतत चेष्टा करो।<br />दूसरों को देखना हो तो उन्हीं के दृष्टिकोन से उन्हीं की परिस्थिति में पहुंचकर<br />देखो फिर उनकी गलतियाँ उतनी नहीं दिखाई देगी। पहले अपना सुधार करो।<br />तुम्हारा सुधार हो गया तो जगत् का एक अंग अपने-आप सुधर जाएगा। याद<br />रखो - मन में भय, अशान्ति, उद्वेग और विषाद को स्थान न दो। भगवान की<br />दया अथवा आत्मा की पवित्रता और नित्यता पर विश्वास रखकर सदा शान्त,<br />निर्भय और प्रसन्न रहनेका यत्न करो।<br />
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human statue of mistakes
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