नीचे प्रेमचंद की कहानी 'सत्याग्रह का एक अंश दिया गया
'हे। तुम इसे पढ़ोती ती पामोठो कि विवाम चिट्ठी के बिना यह ऊंश
अधूरा-सा हे तुम आवश्यकता के अनुसार उचित जगहों पर विराम
चिह लगाओ
-
उसी समय
एक खोमचवाला जाता दिखाई दिया । बज चुके
चुके ये
चारों तरूपा मन्नाटा छा गया था पंडित जी ने षुलाया व्योमचयाप
व्योमचेवामा पहिए क्या भूप मा आई न
भुष मला आई न अन्न - जम छोड़ना
छोड़ला माधुओं
काम हे हमारा आप नहीं मोटेवाम अब क्या हे यहाँ क्या किसी
कम है चाहें तो महीने पड़े वह और भूप न लगे जुझती
वप इत्सिए बुपाया है कि जग अपनी फुप्पी मुझे दे देती
है मुझे भय होता है |
आधु स कम
फ्या रंग
हा
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I think satyagrah ka ek ansh
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