Science, asked by rajy40486, 2 months ago


चौरहार्यनच राजहार्य
नातृभान्य नच भारकारि
व्यये कृते वर्धत एव नित्य
विद्याधन सर्वधनप्रधानम​

Answers

Answered by rajivgupta262
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Answer:

न चौरहार्यं न च राजहार्यं, न भ्रातृभाज्यं न च ।

व्यय कृते वर्धते एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ।।

भावार्थ ► अर्थात विद्या रूपी धन को ना तो कोई चुरा सकता है और ना कोई राजा विद्या रूपी धन को आपसे छीन सकता है। विद्या रूपी धन ऐसा धन है, जिसका बंटवारा भाइयों आदि में भी नहीं होता और ना ही इस धन पर कोई कर या व्यय आदि लगता है। यह धन एक ऐसा धन है, जिसे जितना अधिक खर्च करेंगे, यह उतना ही अधिक बढ़ेगा। इसलिए विद्या रूपी धन ही सबसे सर्वश्रेष्ठ धन है।

तात्पर्य ► यहां पर विद्या से तात्पर्य शिक्षा एवं ज्ञान से है, जिसने शिक्षा व ज्ञान ग्रहण कर लिया वह सबसे अधिक धनी व्यक्ति है। वही सबसे सार्थक धन है। पैसे रूपी धन हमेशा किसी के पास स्थाई रूप से नहीं रहता, लेकिन विद्या रूपी धन यदि व्यक्ति के पास एक बार आ जाए तो वह हमेशा के लिए व्यक्ति के पास स्थाई रूप से रह जाता है और संसार की कोई भी शक्ति उनको उस व्यक्ति से नहीं छीन सकती।

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