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1. परीक्षा का भय और आतंक
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परीक्षा में पास होना आवश्यक है नहीं तो जीवन का बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाता है। अपने साथियों से बिछड़ जाएंगे, ऐसी चिन्ता हर विद्यार्थी को होती है। सारा साल विद्यार्थी परीक्षा की तैयारी करता रहता है और अंत में परीक्षा का दिन आ ही आ जाता है। विद्यार्थी परीक्षा के भय से रात भर जाग कर पढ़ते हैं।प्रत्येक विद्यार्थी का हृदय धक-धक कर रहा होता है। मेधावी और परिश्रमी विद्यार्थी को कक्षा में अपनी ‘पोजीशन’ गिरने का डर लगा रहता है और कोई विद्यार्थियों को तो अपने फेल हो जाने का डर लगा रहता है। जो विद्यार्थी वर्ष भर मन लगाकर परिश्रम करते हैं, पाठ्यक्रम को पढने में लगे रहते हैं। ऐसे परिश्रमी विद्यार्थी आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हैं, फिर भी उन्हें परीक्षा का भय कम नहीं होता। जो विद्यार्थी वर्ष भर परिश्रम नहीं करते, इस दिन वह भगवान् से अपनी सफलता की प्रार्थना कर रहे होते हैं ताकि वह फेल होने से बच जाए और इस दिन वह पछताते हैं कि हम पहले क्यों नहीं पढ़े। अब उन्हें माता पिता के उपदेश याद आते हैं कि वह उनके कहे अनुसार मेहनत कर लेते। परीक्षा के भय के कारण प्रत्येक विद्यार्थी के मन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं। वह यही सोचते हैं कि परीक्षा भवन में बैठ कर क्या होगा। क्या प्रश्न पत्र आसान होगा या मुश्किल? क्या उसे सारे प्रश्न आते होंगे या नहीं? क्या वह परीक्षा में पास हो जाएगा या नहीं? इस तरह परीक्षा के भय के कारण विद्यार्थी के मन में तरह-तरह के विचार उभरते हैं और वे परीक्षा के बारे में सोच कर ही घबरा जाते हैं। सभी विद्यार्थी परीक्षा के नाम से ही घबराते हैं परन्तु फिर भी उन्हें परीक्षा देनी ही पड़ती है क्योंकि विद्यार्थी की योग्यता को परखने का एक यही श्रेष्ठ उपाय है। परीक्षा में पास होने के लिए कुछ विद्यार्थी गल्त साधन भी अपनाते हैं। परन्तु डरते भी हैं कि कहीं पकड़े न जाएं। वे परीक्षा में नकल करने की भी सोचते हैं। परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित नज़र आते हैं क्योंकि यह भय ही ऐसा है। सभी विद्यार्थी यही प्रार्थना कर रहे होते हैं कि जो प्रश्न आए हों वे उन्हें आते हों और उनके अच्छे नम्बर आ जाएँ। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर उनके पृष्ठ उल्ट-पुल्ट कर रहे होते हैं।
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