Hindi, asked by paarti9493, 1 day ago

नीचे दो काव्यांश दिए गए हैं। किसी एक काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए
देश के आजाद होने पर बिता लंबी अवधि अब असहय इस दर्द से हैं धमनियाँ फटने लग व्यर्थ सीढ़ीदार खेतों में कड़ी मेहनत किए हो गया हूँ और जर्जर, बोझ ढोकर थक गया
अब मरूँगा तो जलाने के लिए मुझको, अरे ! दो लकड़ियाँ भी नहीं होंगी सुलभ इन जंगलों से । वन कहाँ हैं ? जब कुल्हाड़ों की तृषा है बढ़ रही काट डाले जा रहे हैं मानवों के बंधु तरुवर फूल से, फल से, दलों से, मूल से, तरु-छाल से सर्वस्व देकर जो मनुज को लाभ पहुँचाते सदा कट रहे हैं ये सभी वन, पर्वतों की दिव्य शोभा हैं निरंतर हो रही विद्रूप. ऋतुएँ रो रहीं गगनचुम्बी वन सदा जिनके हृदय से फूटते झरने, नदी बहती सुशीतल नीर हर पहर नित चहकते हैं कूकते रहते विहग फूल पृथ्वी का सहज श्रृंगार करते हैं जहाँ
'जब कुल्हाड़ों की तृषा है बढ़ रही- कथन से क्या तात्पर्य है ?
(क) हिंसा बढ़ना |
(ख) सामाजिक क्रांति होना ।
(ग) युद्ध का अवसर आना |
(घ) पेड़ों को काटकर भी तृप्त न होना |

Answers

Answered by shishir303
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जब कुल्हाड़ों की तृषा है बढ़ रही- कथन से क्या तात्पर्य है ?

➲ (घ) पेड़ों को काटकर भी तृप्त न होना |

⏩ ‘जब कुल्हाड़ों की तृषा है बढ़ रही’ इस कथन से कवि का तात्पर्य यह है कि ‘मानव पेड़ों को काटकर भी तृप्त नहीं हो रहा। कवि इस पद्यांश के माध्यम से यह कहना चाह रहा है कि मानव अपने स्वार्थ में इतना लोभी हो गया है कि वह जंगलों को नष्ट करता जा रहा है। उसकी कुल्हाड़ियों की प्यास नहीं बुझ रही और वह निरंतर पेड़ों को काटे जा रहा है।  

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