Hindi, asked by rinasab263, 3 months ago

नाचने के लिए खुला आंगन
गाने के लिए गीत
हंसने के लिए थोड़ी- सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी हरी घास
फूलों के लिए पहाड़ों की शांति।
क) हंसने और गाने के बारे में कवयित्री क्या कहना चाहती है?
ख) कवयित्री एकांत की इच्छा क्यों रखती है?
ग) कवयित्री शहरी प्रभाव पर क्या व्यंग्य करती है?​

Answers

Answered by rajlashmimaurya
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Answer:

कवयित्री परिचय

निर्मला पुतुल

जीवन परिचय-निर्मला पुतुल का जन्म सन् 1972 में झारखंड राज्य के दुमका क्षेत्र में एक आदिवासी परिवार में हुआ। इनका प्रारंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा। इनके पिता व चाचा शिक्षक थे, घर में शिक्षा का माहौल था। इसके बावजूद रोटी की समस्या से जूझने के कारण नियमित अध्ययन बाधित होता रहा। इन्होंने सोचा कि नर्स बनने पर आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी। इन्होंने नर्सिग में डिप्लोमा किया तथा काफी समय बाद इग्नू से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इनका संथाली समाज और उसके रागबोध से गहरा जुड़ाव पहले से था, नर्सिग की शिक्षा के समय बाहर की दुनिया से भी परिचय हुआ। दोनों समाजों की क्रिया-प्रतिक्रिया से वह बोध विकसित हुआ जिससे वह अपने परिवेश की वास्तविक स्थिति को समझने में सफल हो सकीं।

रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।

साहित्यिक परिचय-कवयित्री ने आदिवासी समाज की विसंगतियों को तल्लीनता से उकेरा है। इनकी कविताओं का केंद्र बिंदु वे स्थितियाँ हैं, जिनमें कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ती पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, पुरुष वर्चस्व, स्वार्थ के लिए पर्यावरण की हानि, शिक्षित समाज का दिक्कुओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना आदि है। वे आदिवासी जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से, कलात्मकता के साथ हमारा परिचय कराती हैं और संथाली समाज के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुओं को बेबाकी से सामने रखती हैं। संथाली समाज में जहाँ एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर परिश्रम करने की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्व हैं, वहीं दूसरी ओर उसमें अशिक्षा और शराब की ओर बढ़ता झुकाव जैसी कुरीतियाँ भी हैं।

कविता का सारांश

इस कविता में दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। बृहतर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलेपन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फसल, हवाएँ-ये सब आधुनिकता के शिकार हो रहे हैं। आज के परिवेश, में विकार बढ़ रहे हैं, जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। कवयित्री कहती है कि निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ शेष है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1.

अपनी बस्तियों की

नगी होने से

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

अपने चहरे पर

सथिल परगान की माटी का रंग

बचाएँ डूबने से

पूरी की पूरी बस्ती को

हड़िया में

भाषा में झारखडीपन

शब्दार्थ

नंगी होना-मर्यादाहीन होना। आबो-हवा-वातावरण। हड़िया-हड्डयों का भंडार। माटी-मिट्टी। झारखंडीपन-झारखंड का पुट।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से उद्धृत है। यह कविता संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा से अनूदित है। कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक से बचाने का आहवान करती है।

व्याख्या-कवयित्री लोगों को आहवान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। हमें अपनी बस्ती को शोषण से बचाना है नहीं तो पूरी बस्ती हड्डयों के ढेर में दब जाएगी। कवयित्री कहती है कि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है। हमारे चेहरे पर संथाल परगने की मिट्टी का रंग झलकना चाहिए। भाषा में बनावटीपन न होकर झारखंड का प्रभाव होना चाहिए।

विशेष-

कवयित्री में परिवेश को बचाने की तड़प मिलती है।

‘शहरी आबो-हवा’ अपसंस्कृति का प्रतीक है।

‘नंगी होना’ के अनेक अर्थ हैं।

प्रतीकात्मकता है।

भाषा प्रवाहमयी है।

उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है।

काव्यांश मुक्त छद तथा तुकांतरहित है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

कवयित्री वक्या बचाने का आहवान करती है?

संथाल परगना की क्या समस्या है?

झारखंडीपन से क्या आशय है?

काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

कवयित्री आदिवासी संथाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाने का आहवान करती है।

संथाल परगना की समस्या है कि यहाँ कि भौतिक संपदा का बेदर्दी से शोषण किया गया है, बदले में यहाँ लोगों को कुछ नहीं मिलता। बाहरी जीवन के प्रभाव से संथाल की अपनी संस्कृति नष्ट होती जा रही है।

इसका अर्थ है कि झारखंड के जीवन के भोलेपन, सरलता, सरसता, अक्खड़पन, जुझारूपन, गर्मजोशी के गुणों को बचाना।

काव्यांश में निहित संदेश यह है कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहर नदी, पर्वत, पेड़, पौधे, मैदान, हवाएँ आदि को प्रदूषित होने से बचाएँ। हमें इन्हें समृद्ध करने का प्रयास करना चाहिए

Explanation:

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