नीडेरिया नाइदेरिया में दो लक्षण
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अधिक सदस्यों वाला प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक संघ है जो समुद्री व मीठे जलाश्यों में मिलते हैं, हालांकि इनमें से अधिकतर समुद्रवासी हैं। यह अपनी निडोसाइट नामक विशेष कोशिकाओं के लिये जाने जाते हैं जो सुई जैसी विषैली वस्तुएँ विस्फोटक रूप से छोड़कर अन्य प्राणियों का शिकार करते हैं। इनके शरीर का अधिकांश भाग मीसोग्लीया (mesoglea) नामक अवलेह (जेली) जैसी सामग्री का बना होता है जो एक पतली त्वचा के अन्दर बन्द होता है। इनके शरीरों में व्यासीय सममिति (radial symmetry) दिखती है और एक मुख होता है जिसके इर्द-गिर्द निडोसाइट कोशिकाएँ धारण किये हुए टेन्टेकल होते हैं। जेलीमछली सबसे अधिक पहचानी जाने वाली निडारिया संघ की श्रेणी है
2)सिलेंटरेटा (Coelenterata) या आंतरगुही जंतु जगत की एक बड़ी निम्न कोटि की संघ (फ़ाइलम, बड़ा समूह) है। इस प्रसृष्टि के सभी जीव जलप्राणी हैं। केवल प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) तछिद्रित (स्पंज) ही ऐसे प्राणी हैं जो आंतरगुही से भी अधिक सरल आकार के होते हैं।
विकासक्रम में ये प्रथम बहुकोशिकीय जंतु है जिनकी विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में विभेदन तथा वास्तविक ऊतकनिर्माण दिखाई पड़ता है। इस प्रकार इनमें तंत्रिका तंत्र तथा पेशीतंत्र का विकास हो गया है। परंतु इनकी रचना में न सिर का ही विभेदन होता है, न विखंडन ही दिखाई पड़ता है। इनका शरीर खोखला होता है, जिसके भीतर एक बड़ी गुहा होती है। इसको आँतरगुहा (सीलेंटेरॉन) कहते हैं। इसमें एक ही छेद होता है। इसको 'मुख' कहते हैं, यद्यपि इसी छिद्र के द्वारा भोजन भी भीतर जाता है तथा मलादि का परित्याग भी होता है। शरीर की दीवार कोशिकाओं की दो परतों की बनी होती है- बाह्मस्तर (एक्टोडर्म) तथा अंत:स्तर (एँडोडर्म)- और दोनों के बीच बहुधा एक अकोशिकीय पदार्थ - मध्यश्लेष (मीसाग्लीया)- होता है। मुख के चारों ओर बहुधा कई लंबी स्पर्शिकाएँ होती हैं। इनका कंकाल, यदि हुआ तो, कैल्सियमयुक्त या सींग जैसे पदार्थ का होता है। जल में रहने तथा सरल संरचना के कारण इनमें न तो परिवहनसंस्थान होता है, न उत्सर्जन या श्वसनसंस्थान। जननक्रिया अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों ही विधियों से होती है।