नागरी कहकर कवि किसे संबोधित करना चाहता है
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Explanation:
नागरी' कहकर कवि ...सुंदर स्त्री... को संबोधित करना चाहता है।
नागरी कहकर कवि सुंदर स्त्री को संबोधित करना चाहता है। जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ की इन पंक्तियों में....
बीती विभावरी जाग री
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी
अर्थात सुबह हो रही है, आकाश में तारे डूब रहे हैं। पौ फट चुकी है, सुबह हो चुकी है और स्त्रियां घड़े को लिए पानी भरने को निकल पड़ी है। पनघट पर एक सुंदर स्त्री पानी में घड़े को डुबो रही है।
कवि ने यहाँ पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रातःकाल काल के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
मानवीकरण अलंकार में प्राकृतिक दृश्यों पर मानव का आरोपण किया जाता है, अर्थात प्रकृति के तत्वों को मानव मान कर उनका वर्णन किया जाता है।
यहाँ पर कवि ने आकाश को पनघट, तारों को घड़ा तथा प्रातःकाल की ऊषा को सुंदर स्त्री का आरोपण का किया है।
जब रात की कालिमा बीत जाती है और प्रातःकालीन उषा का आगमन होता है, तब तारे आकाश में डूबने लगते हैं।कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य के इस दृश्य की पनघट पर सुंदर स्त्री द्वारा घड़े डुबोने से तुलना की है।
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Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि की जग के साथ रहकर चलने की और जग से अलग रहने की स्थिति का वर्णन करता है। कवि जानता है कि मनुष्य संसार से अलग नहीं हो सकता। वह जानता है कि वह इस संसार का एक हिस्सा है। अतः वह कितना भी चाहे परन्तु इससे कटकर रहना संभव नहीं है। वह कहीं भी जाएगा, जग उसके साथ ही होगा। उसे इस जग से चाहे कष्ट ही क्यों न मिले लेकिन इससे अलग होना उसके बस की बात नहीं है।
इस स्थिति से निकलने के लिए उसने एक नया तरीका निकाला है। वह इस जग में रहते हुए भी इसकी उपेक्षा करता है। उसे संसार के लोगों द्वारा कितना भला-बुरा कहा जाता है लेकिन वह उन बातों पर ध्यान ही नहीं देता। उसने अपने अलग व्यक्तित्व तथा जीवन का निर्माण किया हुआ है। वह यहाँ निर्भीकता पूर्वक रहता है। अतः आज वह संसार के साथ रहकर भी उससे अलग हो गया है।