नाहन ढलाई कारखाने पर सविस्तार नोट
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यह सिरमौर जिला का मुख्यालय है, कंदराओं और हरे खेतों को निहारते हुए यह एक पृथक पर्वतपृष्ठ पर स्थित है। यह नगर राजधानी के रूप में राजा करण प्रकाश द्वारा 1621 ई. में स्थापित किया गया था। इसकी रचना की एक और कहानी यह है कि एक संत एक नाहर के साथ इस स्थान पर रहता था, जहां नाहन का महल खड़ा है। नाहर का अर्थ शेर होता है और शायद इसने अपना नाम इस संत से लिया है। नाहन की संक्रियाओं का केंद्र चौगान,‘बिक्रम का बाग’ और ‘खादर का बाग’ हैं। नाहन मानसून के अंत में सावन द्वादशी मनाता है, जब स्थानीय देवताओं की 52 पालकियां एक जलूस में जगन्नाथ मंदिर को ले जाई जाती हैं। जहां पारंपरिक तौर पर उनको एक तालाब में तैराया जाता है तथा आधी रात को उन्हें अपनी पूर्वावस्था में लाया जाता है। राजाओं के शासनकाल के दिनों से ही नाहन के मध्य में रानीताल नाम का तालाब तथा एक मंदिर है। भारत के सबसे प्राचीन ढलाई करने के कारखानों में एक यहां नाहन में है। हिमाचल प्रदेश की बिरोजा व तारपीन की फैक्टरी भी यहां स्थित है।