न इसका अर्थ हम पुरूषत्व का बलिदान कर देंगे।
न इसका अर्थ हम नारीत्व का अपमान सह लेंगे।
रहे इंसान चुप कैसे किचरणाघात सहकर जब,
उमड़ उठती धरा पर धूल जोलाचार सोई है।
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good shayri Kya aap ek shayar ho ??
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संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक भाषा भारती के पाठ ना यह समझो कि हिंदुस्तान की तलवार सोई है से अवतरित है इसके रचयिता राम कुमार चतुर्वेदी चंचल है
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व्याख्या - इसका यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि हम अहिंसा का आचरण अपनाकर वीरता का त्याग कर देंगे और कायर बन जाएंगे और इसका यह अर्थ नहीं लगाना लगा लेना चाहिए कि हम नारी बन के लिए किए गए अपमान को सहन लेंगे हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि धरती पर पैरों के नीचे दबी कुचली धूल भी पैरों की ठोकर खाने पर आकाश में उम्र कर चारों ओर छा जाती है वह स्त्री रूपी धूल किसी वजह से अपनी लाचारी की दशा में अपनी शक्ति को पहचानती नहीं रही है यह उसकी सुप्त अवस्था की अज्ञानता थी उसकी अशिक्षा थी |
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