ना जाने तपक पंडित मैं कौन मुझे इंगित करता तब मौन देख वसुधा का योवन भार गूजं उठता है जब मधुमास विधुर उर के से मृदु उद्गगार कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छवास न जाने सौरभ के मिस कौन संदैशा मुझे भेझता कौन
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वसुधा का योवन भार गूजं उठता है जब मधुमास विधुर उर के से मृदु उद्गगार कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छवास न जाने सौरभ के मिस कौन संदैशा मुझे भेझता कौन
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भीतर भीतर सब रिश्तो से हंसी हंसी के तन मन धन से जाहिर बातें बाद में अति तेज क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज
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