Hindi, asked by vony2156, 11 months ago

नुक्कड़ नाटक सबसे सस्ता गोश्त की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिये

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Answered by shishir303
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‘सबसे सस्ता गोश्त’ नुक्कड़ नाटक असगर वजाहत द्वारा लिखा गया नाटक है। इसकी कथावस्तु सांप्रदायिक दंगों पर आधारित है। नुक्कड़ नाटक की कथावस्तु हमारे आस पास के जीवन से ही संबंध रखती है। हमने देखा है कि अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं और इन दंगों में हर समुदाय के लोग मारे जाते हैं। यह दंगे क्यों और कैसे होते हैं इसी बात को विषय बनाते हुए ‘सबसे सस्ता गोश्त’ नाटक की कथावस्तु रचित की गई है।

सबसे सस्ता गोश्त में दो ऐसे सांप्रदायिक प्रवृत्ति के नेताओं की योजनाओं को पर्दाफाश किया गया है, जिसमें वह सांप्रदायिक दंगा कराने के लिए पेशेवर बदमाशों का सहारा लेते हैं। यह नेता लोग सांप्रदायिक दंगों की राजनीति करते हुए हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगा भड़काने के लिए दोनों समुदायों के धर्म स्थलों मंदिर और मस्जिद में एक-एक पोटली फिंकवा देते हैं, जिसमें गोश्त है।

यह लोग दिखाने के लिये तो हिंदू मुस्लिम एकता के गीत गाते हैं लेकिन असलियत में यह इन्हीं दोनों समुदायों के धर्म-प्रतिनिधियों पंडित और मूल्यों की सहायता से मंदिर-मस्जिद में गोश्त की पोटलियां डलवाते हैं। इस नाटक में पंडित और मुल्लों के बिकाऊ चरित्र को भी बेनकाब किया गया है।

जब दोनों धार्मिक स्थलों मे गोश्त की पोटली डलवा दी जाती हैं, तो गोश्त की पोटली देखकर हिंदू समझते हैं कि मुसलमानों ने गाय का गोश्त मंदिर में डाला है और मस्जिद में गोश्त की पोटली देखकर मुसलमान समझते हैं कि हिंदुओं ने सूअर का गोश्त मस्जिद में डाला है।

इस तरह दोनों समुदायों के लोग इस बात को लेकर आपस लड़ने-मारने को उतारू हो जाते हैं। इससे पहले कि दंगे भडकें कि तभी एक आदमीऔर दोनों समुदाय के लोगों से कहता है कि तुम लोग हिंदू-मुसलमान नहीं बल्कि तुम लोग दंगाई हो और दंगे करना चाहते हो। वो दोनों समुदायों के लोगों से लड़ाई का कारण पूछता है और मंदिर मस्जिद में से गोश्त की पोटलियां देखकर यह बताता है कि यह दोनों गोश्त गाय या सूअर का नहीं बल्कि आदमी का है। जब कुछ आवाज आती हैं अच्छा आदमी का गोश्त है, तब तो कोई बात नहीं। पूरी स्थिति बेहद तनाव पूर्ण हो जाने के बाद जिस ठंडेपन के साथ नाटक खत्म होता है, उससे यह पता चलता है कि यदि यह का गोश्त सूअर या गाय का होता तो वह लड़ाई झगड़े, खून-खराबे का कारण बनता लेकिन जैसे यह पता चला कि यह आदमी का गोश्त है तो किसी को कोई परवाह नहीं, कि कौन आदमी था? क्यों मारा गया?

इस नाटक का द्वारा नाटककार ने यह संदेश देने का प्रति किया है कि इस दुनिया में सबसे सस्ता गोश्त आदमी का ही है। कितने दंगों में कितने आदमी मारे जाते हैं. उनकी कोई परवाह नहीं करता है। लेकिन जानवरों की गोश्त के ऊपर हिंदू मुसलमान आपस में लड़ बैठते हैं। इस नाटक के माध्यम से लेखक ने दोनों समुदायों के सांप्रदायिक नेताओं के दौरे चरित्र का भी पर्दाफाश किया है और यह बताने की चेष्टा की है कि किस तरह दंगे होते नहीं बल्कि करवाए जाते हैं, ताकि स्वार्थी नेता लोग अपने हितों की पूर्ति कर सकें। नाटक हमारे वर्तमान परिवेश की सच्चाई को उजागर करता है। जहाँ छोटी-छोटी बात पर हिंदू-मुसलमानों की धार्मिक भावनाये आहत हो जाती है, और वे एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते है, यानि धर्मांधता मे आदमी की ही बलि चढ़ती है, उसका कोई मोल नही है। आदमी का गोश्त ही सबसे सस्ता है।

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