नौका कब पार नहीं होती ?
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Answer:it is a poem
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती — सोहनलाल द्विवेदी कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। चढ़ती दीवारों पर सौ सौ बार फिसलती है। चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है।
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Explanation: यह कविता है
लहरो से डरकर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है
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