Hindi, asked by luciferjeet, 1 year ago

नीड़ का निर्माण फिर फिर का संदेश

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Answered by sarthakrahate24
16

नीड़ का निर्माण फिर  

लेखक हरिवंश राय बच्चन

देश भारत

भाषा हिंदी

प्रकार आत्मकथा

प्रकाशन तिथि 1970

पूर्ववर्ती क्या भूलूं क्या याद करूँ

उत्तरवर्ती बसेरे से दूर

नीड़ का निर्माण फिर हरिवंश राय बच्चन की एक प्रसिद्ध कृति है।ये पद्यखंड श्री हरिवंश राय ‘बच्चन’ के सतरंगिनी नामक काव्य से है | यह उनकी आत्मकथा का दूसरा भाग है, जिसका प्रकाशन 1970 में हुआ। डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन को इसके लिए प्रथम सरस्वती सम्मान दिया गया था।[1] ‘मधुशाला’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’, ‘निशा निमंत्रण’, ‘सतरंगिनी’ इत्यादि इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं | इनकी काव्य रचना ‘दो चट्टानों’ पर इन्हें साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया | सन् १९७६ में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया | उनकी आत्मकथा के चार खण्ड हैं-

क्या भूलूं क्या याद करूँ,

नीड़ का निर्माण फिर,

बसेरे से दूर, तथा

दशद्वार से सोपान तक

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में

छा गया सहसा अँधेरा,

धूलि धूसर बादलों ने

भूमि को इस भाँति घेरा,

रात-सा दिन हो गया,

फिर रात आई और काली,

लग रहा था अब न होगा

इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्पात-भय से

भीत जन-जन, भीत कण-कण

किंतु प्राची से उषा की

मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह चले झोंके कि काँपे

भीम कायावान भूधर,

जड़ समेत उखड़-पुखड़कर

गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित

घोंसलो पर क्या न बीती,

डगमगाए जबकि कंकड़,

ईंट, पत्थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम,

किस जगह पर तू छिपा था,

जो गगन पर चढ़ उठाता

गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों

में उषा है मुसकराती,

घोर गर्जनमय गगन के

कंठ में खग पंक्ति गाती;

एक चिड़िया चोंच में तिनका लिए जो जा रही है,

वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती!

नाश के दुख से कभी

दबता नहीं निर्माण का सुख

प्रलय की निस्तब्धता से

सृष्टि का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर।

[2]

Answered by bhatiamona
52

नीड़ का निर्माण फिर फिर कहानी का संदेश

नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता  हरिवंश राय द्वारा लिखी गई है|

कहानी से कवि हमें यह संदेश चाहते है जीवन की हर विषम परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को सुरक्षित ऱखने के लिए दार्शनिक सत्यों से साक्षात्कार कराती है | बच्चन जी की यह कविता एक संदेश के ऱूप में सामने आई है ।

यह संदेश खासकर उन नवयुवकों के लिए है जो जीवन से हताश एवं निराश होकर एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहाँ से उन्हें कोई मंजिल नजर नहीं आती है। उनको समझना होगा की जीवन में असफल मिलने पर हमें निराश नहीं होना चाहिए| आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए| मेहनत करके आगे बढ़ना चाहिए |

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