नेकी और ईमानदारी पर 2 पेज कहानी
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बात 1890 के आस पास की है | एक गांव में एक लड़का रहता था | उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी | उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर नौकरी करे | वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा | बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर नौकरी मिल गयी | नौकरी छेह अने रोज़ की थी | काम था सेठ को रोज़ ४ घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना | लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली |
एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले | उसने चुपचाप उन्हें अख़बार और किताबो से ढक दिया | दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई | लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया | लड़के ने तुरंत ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए | वह बहुत ही खुश हुआ | लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई |
सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ | सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया | लड़के ने कहा सेठ जी में आगे पढ़ना चाहता हु | पर पैसो के आभाव ने पढ़ नहीं पा रहा | आप कुछ सहयता कर दें |
सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रवन्ध कर दिया | लड़का बहुत मेहनत से पढता गया | यही लड़का आगे चलकर बहुत बढ़ा सहित्यकार बना | इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी . हिंदी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है |
मुरारी लाल अपने गाँव के सबसे बड़े चोरों में से एक था। मुरारी रोजाना जेब में चाकू डालकर रात को लोगों के घर में चोरी करने जाता। पेशे से चोर था लेकिन हर इंसान चाहता है कि उसका बेटा अच्छे स्कूल में पढाई करे तो यही सोचकर बेटे का एडमिशन एक अच्छे पब्लिक स्कूल में करा दिया था।
मुरारी का बेटा पढाई में बहुत होशियार था लेकिन पैसे के अभाव में 12 वीं कक्षा के बाद नहीं पढ़ पाया। अब कई जगह नौकरी के लिए भी अप्लाई किया लेकिन कोई उसे नौकरी पर नहीं रखता था।
एक तो चोर का बेटा ऊपर से केवल 12 वीं पास तो कोई नौकरी पर नहीं रखता था। अब बेचारा बेरोजगार की तरह ही दिन रात घर पर ही पड़ा रहता। मुरारी को बेटे की चिंता हुई तो सोचा कि क्यों ना इसे भी अपना काम ही सिखाया जाये। जैसे मैंने चोरी कर करके अपना गुजारा किया वैसे ये भी कर लेगा।
यही सोचकर मुरारी एक दिन बेटे को अपने साथ लेकर गया। रात का समय था दोनों चुपके चुपके एक इमारत में पहुंचे। इमारत में कई कमरे थे सभी कमरों में रौशनी थी देखकर लग रहा था कि किसी अमीर इंसान की हवेली है।
मुरारी अपने बेटे से बोला – आज हम इस हवेली में चोरी करेंगे, मैंने यहाँ पहले भी कई बार चोरी की है और खूब माल भी मिलता है यहाँ। लेकिन बेटा लगातार हवेली के आगे लगी लाइट को ही देखे जा रहा था।
मुरारी बोला – अब देर ना करो जल्दी अंदर चलो नहीं तो कोई देख लेगा। लेकिन बेटा अभी भी हवेली की रौशनी को निहार रहा था और वो करुण स्वर में बोला – पिताजी मैं चोरी नहीं कर सकता।
मुरारी – तेरा दिमाग खराब है जल्दी अंदर चल
बेटा – पिताजी, जिसके यहाँ से हमने कई बार चोरी की है देखिये आज भी उसकी हवेली में रौशनी है और हमारे घर में आज भी अंधकार है। मेहनत और ईमानदारी की कमाई से उनका घर आज भी रौशन है और हमारे घर में पहले भी अंधकार था और आज भी
मैं भी ईमानदारी और मेहनत से कमाई करूँगा और उस कमाई के दीपक से मेरे घर में भी रौशनी होगी। मुझे ये जीवन में अंधकार भर देने वाला काम नहीं करना। मुरारी की आँखों से आंसू निकल रहे थे। उसके बेटे की पढाई आज सार्थक होती दिख रही थी।
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