नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।
जैसे बसत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात।। in hindi
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कवि वृंद ने कहा है बात अच्छी होने पर भी यदि वह बात बिना मौके की कहीं जाए तो वह बात ही किसी मालूम होती है जिस प्रकार युद्ध के वातावरण वहीं पर कोई यदि सजा सजावट श्रृंगार रस की बात की जाए तो वह बात किसी को भी अच्छी नहीं लगती है
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djf
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batt acchi hai lekin bin awsar ke kharab lagti hai
jaise ki yudh ke maidan me shringar sajawat ki batt acchi nahi lagti
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