निक्षेप क्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
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Answer:
निक्षेप का अर्थ है- प्रस्तुत अर्थ का बोध देने वाली शब्द संरचना ।
Explanation:
निक्षेप के चार प्रकार हैं।
1 नाम
2 स्थापना
3 द्रव्य
4 भाव
1) नाम निक्षेप- शब्द की मूल अपेक्षा किये बिना ही किसी वस्तु का इच्छानुसार नाम करण करना नाम निक्षेप है । इसमें जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया, लक्षण आदि निमित्तों की अपेक्षा नहीं की जाती, जैसे- किसी अनक्षर व्यक्ति का नाम 'उपाध्याय' रखना।
मात्र संकेत के आधार पर संज्ञाकरण करना नाम निक्षेप कहलाता है। पर्यायवाची शब्द नाम निक्षेप में कार्यकारी नहीं होते। जैसे- बालक का नाम अनिल है, उसे कभी हवा पुकारें, कभी समीर, कभी पवन आदि। ऐसा कभी नहीं होता है। नाम निक्षेप में मूल अर्थ की अपेक्षा नहीं रहती, भिखारी का नाम भी लक्ष्मीपति हो सकता है।
2) स्थापना निक्षेप- मूल अर्थ से शून्य वस्तु को उसी के अभिप्राय से स्थापित करना जैसे- किसी प्रतिमा में उपाध्याय की स्थापना करना ।
जो अर्थ तद्रूप (तत रूप) नहीं है उसे तद्रूप मान लेना स्थापना निक्षेप है। (किसी प्रतिमा में उपाध्याय की स्थापना करना) यह दो प्रकार से होती है।
१. सद्भाव (तदाकार स्थापना)- व्यक्ति अपने गुरू के चित्र को गुरू मानता है।
२. असद्भाव (अतदाकार स्थापना)- एक व्यक्ति ने शंख में अपने गुरू का आरोप कर दिया।
3) द्रव्य निक्षेप- जैन धर्म दर्शन के अनुसार जड़ और चेतन सभी द्रव्यों का त्रैकालिक अस्तित्व है। वर्तमान काल अतीत और अनागत दोनों से संबद्ध रहता है। द्रव्य निक्षेप व्यक्ति अथवा वस्तु की अतीत और अनागतकालीन पर्यायों को ग्रहण करता है। द्रव्य निक्षेप के स्वरूप से जुड़ा एक पक्ष और है तथा वह है-अनुपयोग। ज्ञाता की अनुपयुक्त अवस्था भी द्रव्य निक्षेप कहलाती है। भविष्य में जो राजा बनेगा अथवा राज्य संचालन के दायित्व से जो मुक्त हो गया। दोनों ही राजा के संबोधन से संबोधित किए जाते हैं। भूत और भावी अवस्था के कारण व्यक्ति या वस्तु की उस अभिप्राय से पहचान करना द्रव्य निक्षेप है, जैसे - जो व्यक्ति पहले उपाध्याय रह चुका अथवा भविष्य में उपाध्याय बनने वाला है, उस व्यक्ति को वर्तमान में उपाध्याय कहना।
उपयोग शून्यता की अवस्था में भी द्रव्य निक्षेप का प्रयोग होता है, जैसे~ अध्यापन कार्य में प्रवृत होने पर भी अध्यवसाय-शून्यता की स्थिति में अध्यापक 'द्रव्य अध्यापक' है । इसके तीन रूप बनते हैं।
1. आगमत द्रव्य निक्षेप :- उपयोगरूप आगमज्ञान नहीं होता, लब्धि रूप होता है। कोई व्यक्ति जीव विषयक अथवा अन्य किसी वस्तु का ज्ञाता है किन्तु वर्तमान में उस उपयोग से रहित है उसे आगमत: द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। ज्ञाता है, ज्ञान है (लब्धि है), उपयोग नहीं।
2. नो आगमत: द्रव्य निक्षेप :- ज्ञान नहीं होता। सिर्फ आगम ज्ञान का कारणभूत शरीर होता है- न उपयोग, न लब्धि, न मूल ज्ञान। आगम द्रव्य की आत्मा का उसके शरीर में आरोप करके उस जीव के शरीर को ही ज्ञाता कहना....न उपयोग, न मूल ज्ञान, न ही लब्धि।
(अध्यापन कार्य में प्रवृत्त होने पर भी अध्यवसाय शून्यता effortless)
नोआगमत: के तीन भेद हैं-
A) ज्ञ शरीर:- आवश्यक सूत्र के ज्ञाता की मृत्यु हो जाने पर भी उसे ज्ञाता कहना।
B) भव्य शरीर:- जन्मजात बच्चे को कहना यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता है। वर्तमान में आवश्यक के बोध से शून्य है। भविष्य में ज्ञान करने वाली आत्मा (future, no present).
C) तद्व्यतिरिक्त:- (द्रव्य निक्षेप का कार्य सबसे अधिक व्यापक है) वस्त्र के कर्त्ता या वस्त्र निर्माण की सामग्री को वस्त्र कहना। वस्तु की उपकारक सामग्री में वस्तुवाची शब्द का व्यवहार किया जाता है। अध्यापन के समय हस्त संकेत आदि क्रिया को अध्यापक कहना। अध्यापक के शरीर को अध्यापक कहना अध्यापक का अर्थ जानने वाले व्यक्ति का शरीर अपेक्षित है।
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3. नो आगम तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप - आगम का सर्वथा अभाव होता है। यह क्रिया की अपेक्षा द्रव्य है, इसके तीन रूप बनते हैं।
A) लौकिक- दूब आदि मंगल है। लोकमान्यतानुसार दूब आदिमंगल है।
B) कुप्रावचनिक- मान्यतानुसार विनायक मंगल है।
C) लोकोत्तर- मान्यतानुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि धर्म मंगल है।
4) भाव निक्षेप- जिस व्यक्ति या वस्तु का जो स्वरूप है,वर्तमान में वह उसी स्वरूप को प्राप्त है, अर्थात् उसी पर्याय में परिणत है, वह भाव निक्षेप है। इसमें किसी प्रकार का उपचार नहीं होता । इसीलिए वह वास्तविक निक्षेप है; जबकि द्रव्य निक्षेप में पूर्वोत्तर दशा होती है। स्वर्ग में देवों को देव कहना यह वास्तविक निक्षेप है। जैसे- अध्यापन की क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति को ही अध्यापक कहना।
अध्यापक की भाँति ही अर्हत् शब्द के भी निक्षेप किये जा सकते है –
1. नाम अर्हत्- अर्हत् कुमार नाम का व्यक्ति।
2. स्थापना अर्हत्- अर्हत् की प्रतिमा ।
3. द्रव्य अर्हत्- जो अतीत में तीर्थंकर हो चुके तथा भविष्य में होने वाले हैं।
4. भाव अर्हत्- जो केवलज्ञान उपलब्ध कर चतुर्विध धर्मसंघ की स्थापना करने वाले तीर्थंकर।
A) आगमत: भाव निक्षेप :- (ज्ञान + उपयोग दोनों) उपाध्याय का अर्थ जानने वाला तथा उस अनुभव में परिणत व्यक्ति को आगमत: भाव उपाध्याय कहते हैं। उपाध्याय शब्द के अर्थ में उपयुक्त आगमत: भाव निक्षेप।
B) नो आगमत: भाव निक्षेप:- उपाध्याय के अर्थ को जानने वाला तथा अध्यापन क्रिया (ज्ञान + क्रिया दोनों) में प्रवृत्त भाव निक्षेप (भाव उपाध्याय) नो आगमत: भाव निक्षेप कहा जाता है।
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