Hindi, asked by alokmohants785, 22 days ago

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥१॥​

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Answered by Anonymous
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अर्थ-मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को ( जिस अवस्था कोप्राप्त हुए पुरुष के कर्म अकर्म हो जाते हैं अर्थात फल उत्पन्न नहीं कर सकते ,उस अवस्था का नाम ' निष्कर्मता ' है | )यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि यानी सांख्य निष्ठा को ही प्राप्त होता है

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