न कश्चित् कस्यचित् मित्रम्, न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः। व्यवहारेण एव जायन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा।
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संस्कृत श्लोक "न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु: व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।" का क्या अर्थ हैं?
शब्दार्थ तो सरल है :
कोई भी किसीका दोस्त नही है ना कोई किसीका दुश्मन. हमारे अपने आचरणसे ही मित्र और शत्रु ऊत्पन्न होते है.
सादे शब्दोंमें इस सुभाषित का आशय पते की बात बताता है की : आप शत्रुवत व्यवहार करो तो शत्रु पैदा होंगे. मित्रवत आचरण करो तो हर कोई आपका मित्र होगा. आप द्वेषभरा - घृणाभरा रवैया रखेंगे तो लोग आपसे कतराऐंगे. और स्नेहमय, प्रेममय व्यवहारसे आप सभीको प्रिय लगेंगे. हमारा ना तो कोई जन्मसे मित्र है ना कोई शत्रु. मृदू वाणी और हृदयमे प्रेम रखनेसे मित्र मिलेंगे. कठोर वाणी और ह्रदयमे द्वेष शत्रूता का निश्चित साधन है.
Answer:
न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं ।
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