नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध का मूल संदेश क्या है पाठ पढ़कर आप किस तरह के समाज की कल्पना करते हैं अपने विचार व्यक्त कीजिए!
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अपनी छोटी लङकी के यह पूछने पर कि नाखून क्यों बढते है,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवदी का ललित निबन्धकार की प्रवृति जाग उठती है और वे इसका उत्तर खोजने के लिए मनुष्य के आदिमकाल से अब तक के जीवन पर दृष्टिपात करते है और इस ललित निबन्ध में इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि नाखून पशुता के प्रतीक है और उनका काटना मनुष्यता की निशानी है।
ये अस्त्र-शस्त्रों, अणु परमाणु बम्बो का बनना भी पशुता की प्रवृत्ति है।
नाखून कटने पर भी बार-बार बढकर इस बात को सूचित करते है कि अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाङता है और आदमी सदैव उससे लोहा लेने को कमर कसते है।
मनुष्य को सुख भौतिक सुख समृद्धि से नहीं मिलेगा, अस्त्र-शस्त्र की बाढ से नहीं मिलेगा वरन् सच्चा सुख मिलता है प्रेम से, आत्मदान से। अनावश्यक अंगों के झङने के प्राकृतिक विकास में जिस दिन मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाऐगा उस दिन मनुष्य की पशुता भी समाप्त हो जाएगे। उस दिन के आने तक मनुष्य नाखून काटता रहेगा, पशुत्व को कुचलता रहेगा।
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